अनहोनी वाला दिन

अनहोनी वाला दिन

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छोटे से मगर ख़ूबसूरत  से शहर मे रहती थी एक लड़की शैलजा ,सलोनी सी शैलजा अपने परिवार से बहुत प्यार करती है।और  आज तो उसकी ख़ुशी  का ठिकाना भी नहीं था।

आज उसके स्कूल में उत्सव था बाल दिवस का।और  शैलजा अपने पूरे परिवार के साथ उसमें जाने वाली थी।

छोटा सा है शैलजा का परिवार जिसमें है शैलजा की मम्मी पापा और  उसका छोटा सा प्यारा सा भाई यश।उत्सव की ख़ुशी  मे वक़्त  से पहले ही तैयार हो गई थी शैलजा और जब तक सब घर वाले तैयार होते तब तक अपने ख्यालों की दुनिया मे खो गयी थी वो।सोचने लगी थी अपने स्कूल के बारे में वो।

बहुत बड़ा है उसका स्कूल,
और साथ ही बहुत पुराना भी बहुत सी कहानियाँ  जुड़ी हैं उस स्कूल के साथ ,

सच्ची या झूठी यह तो नहीं जानती थी वो, पर हर पुराना बच्चा स्कूल से जाने से पहले उन कहानियों को नये आने वाले बच्चों को ज़रूर सुनाता था।

इसलिए कभी उस स्कूल की फ़िज़ाओं मे इन कहानियों कि महक कम ही नहीं हुई थी।

शैलजा ने भी सुनी थी कुछ कहानियाँ ,जिसमें सबसे प्रसिद्ध थी उस लड़की की कहानी जिसने स्कूल में आत्महत्या कर ली थी।

शैलजा की सीनियर ने उसे बताया था।कि एक बार एक लड़की को दूसरी लड़की ने बताया कि वो फेल हो गई हैं और  फिर उस दूसरी लड़की ने अपने घर वालों की पिटाई के डर से कॉलेज मे स्थित कुऐं में कूदकर अपनी जान देदी थी।

पहली लड़की ने सिर्फ़ मज़ाक किया था पर यह मज़ाक किसी की ज़िंदगी  पर भारी पड़ गया था।

फिर कॉलेज मे उस लड़की की याद मे उस कुऐं  को बन्द करवा कर वहाँ फव्वारा बनवा दिया।

पर कभी भी वो फव्वारा चला नहीं सके ।
क्योंकि जब भी उसे चलाया गया तो पानी का रंग अपने आप ही लाल हो जाता था।और  किसी के रोने की आवाज़ें हवाओं मे तैरने लगती थी।

पूरा कॉलेज डरता था उस फव्वारे के पास जाने में।

और बी टी सी यह जगह तो बहुत से रहस्यों से भरी पड़ी थी।

सख़्त मनाही थी वहाँ जाने की जाने क्यों था ऐसा कभी समझ नहीं आया शैलजा को ।

कोई किसी को बताता नहीं था ,
पर हर लड़की चुपके चुपके बी.टी.सी में जाती ज़रूर थी।वहाँ के रहस्य को पता करने के लिए पर कुछ पता नहीं लगता था वैसे कोई बड़ी अनहोनी भी नहीं हुई थी बी.टी.सी. मे कभी ।फिर भी जाने क्यों टीचर मना करती थी वहाँ जाने को।

कभी कभी डर लगता था शैलजा को वहाँ ,
एक बार तो पापा को बोला भी कि मुझे नहीं पढ़ना उस स्कूल में

पर पापा की भी मजबूरी थी ना ।बेबसी से बोले थे शैलजा के पापा।

"माफ़ कर दो बेटा गरीब आदमी हूँ मैं पर चाहता हूँ तुम बड़ी होकर ज़रूर  बड़ी अफसर बनो। पर मेरी लाडो मैं इस सरकारी स्कूल की फीस भी बहुत मुश्क़िल  से भर पाता हूँ।बहुत मज़बूर हूँ मैं बेटा चाह कर भी बड़े स्कूल नहीं भेज सकता तुम्हें।"

फिर शैलजा ने भी यह बात गाँठ बाँध ली ,और फिर कभी अपने पापा से कोई शिकायत नहीं की।

डर लगता था अक्सर पर अपने डर का सामना करती थी शैलजा ।

तभी ख्यालों की दुनिया मे भ्रमण करती शैलजा से उसकी मम्मी पीछे से आकर बोली।

"तैयार हो गये है सब लाडो चले तुम्हारे स्कूल बाल दिवस के उत्सव में ।"

और  फिर शैलजा उत्साह के साथ चल पड़ी अपने छोटे से प्यारे से परिवार के साथ अपने स्कूल ।

स्कूल के बड़े से दरवाजे पर फूलों से स्वागत हुआ शैलजा और उसके परिवार का ।

पर यह क्या अभी सही से ख़ुश भी नहीं हो पायी भी वो तभी फूलों का रंग बदलने लगा था।

आज उत्सव का नहीं अनहोनी का दिन था ।
समझ गयीं थी शैलजा ।अनजाने डर से काँप उठी फिर तो वो,

पीले कनेर के फूल सुर्ख़  लाल रंग में तब्दील हो गये थे।

भीग गयी थी शैलजा उस रक्त वर्ण मे या शायद रक्त ही था वो समझ नहीं पा रही थी शैलजा कि यह हो क्या रहा है।

तभी एक और अनहोनी हुई।स्कूल अचानक से जलमग्न होने लगा। और शैलजा का प्यारा भाई डूब रहा था उस जल में

कुछ तो करना ही था शैलजा को वो इस अपशगुनी स्कूल की भेंट तो नहीं चढ़ने दे सकती थी अपने भाई को।

सारे डर आज सच हो गये थे। सच में कुछ तो ज़रूर  था उस जगह में।

अब क्या करना है सोच ही रही थी शैलजा तभी उसके मम्मी पापा भी अचानक से गायब हो गये।

बहुत डर गयी थी शैलजा पानी बढ़ता जा रहा था।और उसमें डूबती जा रही थी वो ,

तभी उसने देखा, पानी के बीचों बीच एक गुफा है ।

सोच में पड़ गई  शैलजा इतने दिनों से आ रही हूँ मैं तो स्कूल आज तक तो दिखी नहीं यह गुफा क्या हैं यह सब।

पर फिर अपनी सोच को दरकिनारे कर डूबने से ख़ुद  को बचाने के लिए उस गुफा के अन्दर चली गयीं थी शैलजा ।अन्दर जाकर उसने देखा एक पतला सा रास्ता था बस जगह जगह से टूटा हुआ और  दोनों ओर थी आग उगलती खाई ।जिसमे गिरने वालों के तो हड्डियों का भी चूरन बन जाना निश्चित था।

कैसे पार करें इसे अभी सोच ही रही थी शैलजा तभी उसने देखा कि थोड़ी सी दूर पर उसका भाई खड़ा है ।पर उस तक पहुँचने के लिऐ बहुत हिम्मत चाहिऐ  थी शैलजा को क्योंकि रास्ता तो बहुत खराब था ना।

पर अपने प्यारे भाई को बचाने के लिए तो अपनी जान भी दे सकती थी शैलजा सँभल  सँभल  कर चलती हुई आखिरकार पहुँच गयी थी शैलजा अपने छोटे भाई के पास ।दोनों भाई बहन एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे थे ।भाई तो मिल गया था पर अभी भी मम्मी पापा का तो कुछ पता ही नहीं था।

कैसे बाहर निकलना है इस भूलभुलैया से ,कहाँ मिलेंगे मम्मी पापा कुछ नहीं पता था शैलजा को किसी तरह से दोनों भाई बहन उस सुरंग से बाहर आये तो यह देखकर सन्न रह गयें।वो फव्वारा चल रहा था और चारों तरफ बस ख़ून ही ख़ून बिखरा पड़ा था।तभी एक तेज चीख सुनाई दी शैलजा को।

"अरे यह तो मम्मी की आवाज़  हैं ना शायद बी.टी सी. से आयी हैं यह आवाज़  "।

अपने छोटे भाई से बोली थी शैलजा।

और दोनों भाई बहन ने दौड़ लगा दी थी बी.टी.सी. की तरफ पर सामने का नज़ारा बेहद हैरान कर देने वाला था।

बड़ी बड़ी झाड़ियों ने उनका रास्ता रोक रखा था।और मम्मी को एक बड़े से पेड़ पर लताओं ने जकड़ रखा था।
आज अपने सारे डर को दाँव पर लगा दिया था शैलजा ने ।वो भाग कर स्कूल की कैन्टिन मे गई और एक बड़ा सा चाकू लेकर आ गई ।

फिर तो पागलों की तरह अपने और मम्मी के बीच आयी हर बाधा को गाजर मूली की तरह काट कर रख दिया शैलजा ने और फिर किसी तरह आखिरकार अपनी मम्मी तक जा पहुँची थी शैलजा ।

अपनी मम्मी के पास आ तो गयी थी वो ,
पर वो पेड़ कुछ ज्यादा ही ऊँचा था ।और सबसे ऊपर की शाख पर थी उसकी मम्मा पर आज अगर हिम्मत छोड़ती शैलजा तो शायद हमेशा के लिए अपने परिवार से जुदा हो जाती वो, इसलिऐ अपने डर को ख़ुद  से अलग कर पेड़ पर चढ़ने लगी शैलजा और  फिर किसी तरह अपनी मम्मा तक जा ही पहुँची शैलजा ना जाने कितनी बार कदम लड़खड़ाऐ उसके ,

ना जाने कितनी बार गिरने से बची पर इन सबकी आज फ़िक्र ही कहाँ थी शैलजा को ,
बस एक जुनून सवार था उसे चाहे आज जो हो जाये बस किसी तरह अपने परिवार को सुरक्षित इस स्कूल से बाहर निकालना ही है उसे।

जैसे तैसे अपनी मम्मा को आज़ाद कर लिया शैलजा ने और फिर मम्मा के गले लग फूट फूट कर रो दी शैलजा।और हिचकियों के साथ मम्मा से बोली।

"मम्मा पापा का कुछ पता नहीं चल रहा ,जाने कहाँ हैं वो मेरा दिल बहुत घबरा रहा है सुरक्षित तो होगें ना मेरे पापा बोलो ना माँ।"

शैलजा को दिलासा देती हुई उसकी मम्मी बोली।

"चिन्ता मत करो बेटा हम तीनों मिलकर तुम्हारे पापा को ढूँढ ही लेंगे वैसे भी जिसकी इतनी बहादुर बेटी हो उसके परिवार का तो कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता।हम तीनों मिलकर पूरा स्कूल छान मारेंगे।"

और फिर वो तीनों पागलों की तरह एक क्लास से दूसरी क्लास भटकने लगे।

तभी एक क्लास के आगे ठिठक कर रूक गई थी शैलजा ,

यह शैलजा का अपना क्लास था ।और बाहर से ही दिख रहीं थी वो सीट ,
जिसपर शैलजा बैठती थी ।पर सबसे हैरानी की बात यह थी ,कि उस सीट पर वहीं दस्ताने रखे हुऐ थे जो उसके पापा बड़े प्यार से उसके लिए लाऐ थे।और जो अगले ही दिन चोरी हो गये थे ।

बहुत रोई थी उस दिन शैलजा और ना जाने कितने दिन तक उदास भी रही थी वो ,

दस्ताने मिलने की ख़ुशी में अपनी सीट की ओर दौड़ पड़ी शैलजा और फिर दस्तानों को अपने गले लगा लिया पर फिर जो हुआ वो तो सपने मे भी नहीं सोचा था शैलजा ने।

दस्ताने उसके हाथों से निकल कर उसका गला दबाने लगे थे।ख़ुद  को बचाने के सारे प्रयास विफल होते दिख रहे थे शैलजा को ,

अपनी मौत अपने सामने नाचती दिख रहीं थी उसे ।बेबस सी शैलजा धरा पर गिरकर तड़पने लगती थी।
तभी उसका भाई और माँ उस क्लास में आ जाते है।

शैलजा की हालात देखकर तड़प उठती है उसकी मम्मी और फिर बहुत कोशिशों के बाद शैलजा को उन ख़ूनी दस्तानों के चंगुल से आज़ाद कर लेती वो।

शैलजा अभी अपनी बिखरी साँसों को समेट भी नहीं पाई थी कि तभी एक घुटी घुटी सी आवाज़  उसके कानों में पड़ती है।

यह यह आवाज़ तो वो लाखों में पहचान सकती है ।यक़ीनन यह उसके पापा की ही आवाज़  है।पर यह आवाज़  आ कहाँ से रही है यह सोच कर चारों तरफ नजरें फिराईं  शैलजा ने और फिर उसकी निगाहें जाकर अटक गयी ,क्लास में स्थित एक बड़ी सी मेज पर जिसमें उसकी टीचर दुनिया जहान के कागज रखती थी।दौड़ कर मेज की तरफ जाती शैलजा को यक़ीन हो गया था ।
हों ना हों उसके पापा इसी बड़ी सी मेज मे क़ैद हैं।
अपने छोटे भाई की मदद से पूरी मेज के कागज बहुत जल्द ही बाहर कर दिये शैलजा ने ,और फिर अपने पापा को आज़ाद कर लिया उस कैद से।पूरा परिवार अब एक साथ था ।पर मुश्किलें अभी ख़त्म नहीं हुई थी वो अभी भी उस रहस्यमयी स्कूल के अन्दर ही थे । और  बाहर जाने का हर रास्ता गायब था ।

अब आगे क्या करना है यह सोच सोचकर बेकल शैलजा को अचानक कोई अपना कंधा हिलाता लगा।

दूर कहीं से एक आवाज़  उसके क़रीब आती जा रही थी।

"शैलजा अब उठ भी जाओ ना देखो हम तुम्हारे स्कूल के गेट पर आ गये हैं कमाल लड़की हो तुम गाड़ी में ही सो गयी।"

फिर तो अपनी आँखों को कस कर मसला था शैलजा ने।

उफ्फ !! मतलब मैं इतनी देर से सपना देख रही थी। पर सपना ही सही मैं अब इस स्कूल के अन्दर नहीं जा सकती कहीं सच में वो सपना सच हो गया तो।

पर फिर मम्मी पापा के आगे एक ना चली शैलजा की और वो उसे ज़बरदस्ती स्कूल के अन्दर ले गये।

अन्दर एक बार फिर पीले कनेर के फूलों सें सबका स्वागत हो रहा था।पर इस बार पीला रंग लाल रंग में नहीं बदला था। अचंभित सी शैलजा मंच तक जा पहुँची थी।
जहाँ उनकी नयी प्रिन्सपल सबको सम्बोधित कर रही थी।

" आज सिर्फ़ एक साल ही हुआ है मुझे इस स्कूल मे पर जबसे मैं यहाँ आयी हूँ यहाँ के बारे मे बहुत सी बेसिर पैर की बातें सुनी मैंने ।

हैरान रह गयी मैं तो कि आजकल के जमाने मे भी लोग अंधविश्वास में जकड़े  हुऐ हैंं ।आज आप लोगों को मैं एक सच बताना चाहती हूँ। इस स्कूल में आज तक किसी छात्रा ने आत्महत्या नहीं की है ।यह सब सिर्फ़  और सिर्फ़  अफवाहें है ।और तो और वो फव्वारा सिर्फ़  इसलिये नहीं चला ,क्योंकि उसकी मोटर खराब थी।पर आज वो अपनी पूरी आन बान शान के साथ चलेगा क्योंकि मैंने उसे ठीक करा दिया है ।और  रही बात बी.टी.सी की वो भी बहुत सालों  से साफ़  नहीं हुई थी, और वहाँ जहरीले जीव जन्तु हो गये थे ।इसलिऐ  आप लोगों को वहाँ जाने से मना किया जाता था।पर अब वहाँ की भी सफ़ाई हो गयी है और  आपकी कैन्टिन भी वही शिफ्ट हो गयी है इसलिऐ आप सब जब चाहें तब बी.टी.सी जा सकते है।और  मैं उम्मीद करती हूँ की आगे से आप लोग सुनी सुनायी बातों पर विश्वास नहीं करोगे और एक जरूरी बात अब झूठी कहानियाँ  इस स्कूल की चौखट से दूर रहेगी।और इसके लिए मुझे आप सबकी मदद चाहिऐ।

सारा सच जानकर शैलजा को अपने दिल पर रखी शिला पिघलती हुई लगी। आज सचमुच अनहोनी का दिन था ।शैलजा अपने पूरे परीवार के साथ फव्वारे के किनारे बाल दिवस के उत्सव का आनंद ले रही थी ,बिना किसी डर के वो उस फव्वारे के पानी से खेल रही थी।दिल के हर डर से आज़ाद आज दिल से मुस्कुरा उठी शैलजा।

 


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