अज्ञानता ही दु:ख का कारण।
अज्ञानता ही दु:ख का कारण।
एक व्यक्ति बहुत बड़ा ईश्वर भक्त था। हमेशा पूजा पाठ में ही अपना अधिक समय व्यतीत किया करता था। श्रद्धा और विश्वास से की गई प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनते हैं। एक दिन ईश्वर प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुए और उससे कहने लगे," बोलो तुम क्या चाहते हो? तुम जो चाहोगे वही दिया जाएगा।" वह मौत से बहुत घबराता था। इसलिए बोला-" हे प्रभु यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो ऐसा करिये कि मैं कभी मरूँ नहीं"। प्रभु ने कहा- "अच्छा तुम यही चाहते हो तो देखो, सामने यह सरोवर है उसका एक चुल्लू जल पी लो, तुम उसको पीने के बाद अमर हो जाओगे। वह आदमी बड़ा प्रसन्न हुआ और उस सरोवर के निकट पहुँचा देखा कि उसके किनारे पर बहुत से आदमी पड़े हैं, कोई बहुत वृद्ध है --चलने फिरने में लाचार हैं, कोई शरीर के रोगों से बहुत दुःखी हैं, कोई-कोई कुष्ठ आदि रोगों से दुःखी होकर कराह रहे हैं। तब वह और आगे बढ़ा और जैसे ही उसने जल पीने को हाथ बढ़ाया उन लोगों में से एक ने कहा-" भाई तुम क्या करते हो? वह बोला यह जल मैं पी लूँगा जिससे मैं अमर हो जाऊँगा और कभी मरुँगा नहीं। सब बोले -"अरे ! -अरे ! यह मत करना जल मत पीना, अमर तो हो जाओगे ,हम सब भी अमर हैं परन्तु हम कितने दुःखी हैं ।मौत अच्छी थी कि दुःखों से छूट जाते हैं। अमर होना चाहते हो तो पहले अजर हो जाओ अर्थात कभी रोग न लगे, अमर हो गए और सदैव रोगी रहे तो उससे क्या लाभ। वह बोला-" हाँ यह बात तो आपकी ठीक है अब मैं प्रभु से यही माँग लूँगा कि मैं हमेशा स्वस्थ रहूँ।
उसने प्रभु को फिर याद किया- बोला कि-" हे प्रभु !मुझे फिर से अजर होने का वरदान दीजिए। प्रभु प्रकट हुए और कहने लगे कि ठीक है तू अजर होना चाहता है तो मैं तुझे हमेशा के लिए अजर अथवा निरोगी बना देता हूँ ,तब तुम अमर हो जाओगे।" प्रभु ने यह वरदान दे दिया और कहा वह देखो जंगल में अजर होने का एक पेड़ खड़ा है उसका एक फल खाओ बस फिर तुम कभी बुड्ढे नहीं होगे, रोगी भी नहीं होगे। वह दौड़ा हुआ उस पेड़ के निकट गया वहाँ उसने देखा कि उस वृक्ष के आस पास बहुत से मनुष्य घूम रहे हैं। सब हष्ट -पुष्ट हैं, युवा हैं परंतु वह सब एक दूसरे से लड़ रहे हैं, दुराचारी हैं, कोई किसी की वस्तुएं छीन रहे हैं, कोई किसी से मारपीट कर रहा है, कोई मदिरा पान कर रहा है। अनेक कुकर्म कर रहे हैं। वह है तो सब युवा परंतु सब दु:खी है। इसने भी एक फल उठाया और खाने को हुआ तो उनमें से एक व्यक्ति ने कहा- "क्या तुम भी अजर होना चाहते हो, हमेशा युवा रहना चाहते हो।" क्या देखते नहीं , हमारी क्या दशा है, हम सब अजर हैं और आपस में लड़ रहें हैं, ऐसे जीने से क्या लाभ ? जीवन हो तो ज्ञान के साथ हो तभी तो श्रेष्ठ है। अज्ञानता का जीवन तो मौत से भी बुरा है। इसलिए पहले ज्ञान प्राप्त करो, फिर अजर -अमर। अज्ञानता का जीवन अपने ही लिए नहीं वरन संसार के लिए दुःख का कारण होता है।
उस मनुष्य ने सोचा बात वास्तव में ऐसी ही है। अब मैं अमर होने की नहीं ज्ञान प्राप्त करने की प्रार्थना करूँगा। इतने में फिर उसने अपने प्रभु से प्रार्थना की और प्रभु प्रकट होकर कहने लगे-" कि मनुष्य के दुःख का कारण दूसरा नहीं है बस एक अज्ञानता ही है ।ज्ञान में ही शांति है, ज्ञान में ही आनंद है, ज्ञान ही मनुष्य के लिए वह नेत्र हैं जिनसे वह इस संसार के बहुत से पेचीदा मार्गों को सुगमता से पार कर जाता है और भयंकर दुःखों से बच जाता है।
अतः मेरा मानना है कि यदि हम बचपन से ही बच्चों में इस प्रकार की कहानियाँ प्रस्तुत करेंगे तो बच्चे अध्यात्म के साथ-साथ ज्ञान भी पा सकेंगे और जीवन का असली मकसद जान सकेंगे।
