अग्निपरीक्षा
अग्निपरीक्षा
श्रेया अभी ऑफिस पहुंची ही थी कि फोन बजा। उसने देखा तो एलिना का कॉल था। एलिना श्रेया की बैंगलोर में सबसे अच्छी फ्रेंड थी। जब श्रेया की बैंगलोर में जॉब लगी थी तो एलिना ने ही वहां फ्लैट ढूंढने में उसकी मदद की थी। अपना घर मिलने से पहले कुछ महीने श्रेया एलिना के घर ही रही थी।
उसने फ़ोन उठाया और इससे पहले वह कुछ कहती, दूसरी ओर से आवाज़ आयी, "हैलो मैडम। कहां हो आजकल। ज़िंदा तो है ना तू ? ना मिलती है और ना ही कोई फ़ोन। इस दोस्त को भूल ही गई क्या ?"
"अरे नहीं - नहीं एलिना! ऐसा नहीं है। बस टाइम ही नहीं मिलता है। ख़ैर, तू बता कैसी है। आज कैसे याद आ गई अपनी इस दोस्त की ?" श्रेया ने थोड़ा संभलते हुए कहा।
"मैं बिल्कुल ठीक हूं। तू ये बता शादी - वादी करने का प्लान है तेरा या पूरी लाइफ बस काम ही करती रहेगी।" एलिना ने मजाकिया अंदाज़ में पूछा।
"यार एलिना, तू क्या जब देखो शादी के पीछे पड़ जाती है। मुझे सिंगल देखकर जलन हो रही है क्या तुझे ?" श्रेया ने हंसकर बात को टालते हुए कहा।
"अच्छा - अच्छा अब बातें ना बना। तुझसे बातों में कोई नहीं जीत सकता। वैसे मैंने ये बताने के लिए फ़ोन किया था कि अगले महीने की दस तारीख को हमारी एनिवर्सरी है। एक छोटी सी पार्टी रखी है। तुझे आना है। मैं टाइम और वेन्यू तुझे मैसेज कर दूंगी। बस तू काम का बहाना देकर अब मना मत करना।" एलिना ने ज़ोर देते हुए कहा।
"ओके बाबा, मैं ज़रूर आऊंगी।" श्रेया ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अच्छा चल फिर मैं रखती हूं। अभी थोड़ा काम है। पार्टी में आना ज़रूर। और इतना भी क्या काम करती रहती है, कभी कभी दोस्तों को भी याद कर लिया कर।"
"ओके मैडम। अब देख तू, कैसे तुझे फ़ोन कर - कर के परेशान करती हूं। वैसे भी तेरे अलावा और है ही कौन इस शहर में जिससे ऐसे बात कर सकूं।" श्रेया ने हंसते हुए कहा।
"हां तो अच्छा ही है ना। जब मन करे कर लिया कर फ़ोन। चल अभी रखती हूं। बाय।"
"ओके बाय।"
फ़ोन रखकर श्रेया अपने काम में लग गई। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर बस यही उसकी दुनिया थी। और घर भी क्या, जिसे वह घर कहती थी वह तो बस हजार स्क्वेयर फीट का एक छोटा सा फ़्लैट था जहां श्रेया अकेली रहती थी। ऑफिस में सभी लोग श्रेया के काम से खुश थे। और हो भी क्यों ना, श्रेया ने खुद को काम में ही तो व्यस्त कर रखा था बस।
आज श्रेया को एलिना की वेडिंग एनिवर्सरी की पार्टी में जाना था। पार्टी पांच बजे से शुरू होने वाली थी। श्रेया ऑफिस से ही पार्टी के लिए रेडी होकर निकल पड़ी। गोल्डन बॉर्डर वाली नीले रंग की सिल्क की साड़ी में श्रेया बहुत ही सुन्दर लग रही थी। उसके कंधे से थोड़े नीचे तक फैले रेशमी बालों की लटें बेहद खूबसूरत लग रहीं थी।
उसे पहले एक अच्छा सा गिफ्ट लेना था और फिर टाइम से पार्टी में पहुंचना था। उसने ऑफिस के नीचे से रिकशा ली और कमला गिफ्ट सेन्टर पहुंची। वहां से एक एक्सक्लूज़िव सा शो पीस गिफ्ट रैप कराया और फिर वहीं से दी ओबेरॉय होटल के लिए कैब बुक की। शाम के पांच ही बज रहे थे। कैब भी टाइम से मिल गई थी। पंद्रह मिनट में श्रेया पार्टी में पहुंच गई थी। पार्टी शुरू हो चुकी थी। ऊपर से नीचे तक दुल्हन की तरह सजी धजि एलिना अपने पति के साथ सभी गेस्ट का स्वागत कर रही थी। दूसरी तरफ एलिना का दस वर्षीय बेटा अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ पार्टी एन्जॉय कर रहा था।
उसने जाकर एलिना को गले मिलते हुए विश किया, " हैप्पी वेडिंग एनिवर्सरी!" फिर उसने उसके पति, विनीत, को हाथ मिलाते हुए विश किया और गिफ्ट दे दिया। अभी वह एलिना और उसके पति से बातें कर ही रही थी कि पीछे से किसी ने आवाज़ दी।
"श्रेया!!"
उसने पलटकर देखा तो देखती ही रह गई। ब्ल्यू शर्ट और ब्लैक कोट में पांच फीट नौ इंच का एक आकर्षक व्यक्तित्व वाला युवक उसके सामने खड़ा था। उसे ऐसा लगा जैसे वह कोई सपना देख रही हो। वह मन ही मन बुदबुदाने लगी, "क्या तुम सचमुच मेरे सामने खड़े हो ? या यह केवल मेरा वहम है ?" उसके मुंह में शब्द मानो जम से गए थे। "तुम!!.....तुम.....यहां ?" उसने मुश्किल से संभलते हुए कहा।
वह कुछ देर के लिए मूक बना रहा और एकटक श्रेया को देखता रहा। उसे जैसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सामने जो लड़की खड़ी है, वह श्रेया है। फिर थोड़ा संभलते हुए कहा, "हां....विनीत.. मेरा फ्रेंड है। अभी कुछ दिनों के लिए काम से बैंगलोर आया हुआ था तो विनीत ने इन्वाइट कर लिया।"
"ओह, ओके। मैं और एलिना भी दोस्त हैं। तो इसलिए....।" बस इतना ही बोल पाई श्रेया।
दरअसल, शेखर और श्रेया एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। यहां मैं आपको बता दूं, शेखर और श्रेया का प्यार बिल्कुल अलग था। उन दोनों ने एक दूसरे को सिर्फ फोटो में ही देखा था। वे एक - दूसरे से कभी मिले नहीं थे। यही तो खास बात थी उनके प्यार की, कि बिना मिले ही वे दोनों एक दूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे। बातें भी रोज़ - रोज़ कहां हो पाती थी। बस हफ़्ते में एक या दो बार ही बातें होती थी और वह दिन श्रेया के लिए पूरे हफ़्ते का सबसे खूबसूरत दिन होता था। वे दोनों सोशल मीडिया के जरिए मिले थे। आजकल सोशल मीडिया के जरिए बहुत गुनाह हो रहे हैं। पर शेखर और श्रेया के रिश्ते में ऐसी कोई बात नहीं थी। वे दोनों तो गुनाह की सोच से भी परे थे। यह उन दिनों की बात है जब श्रेया कोलकाता में अपने पैरेंट्स के साथ रहती थी और सी.ए. के एग्जाम्स की तैयारी कर रही थी। शेखर भी चंडीगढ़ के एक हॉस्टल में रहकर अपनी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था।
फिर एक दिन शेखर ने श्रेया से मिलने की इच्छा जाहिर की। मिलना तो श्रेया भी चाहती थी। अब वह दोनों कब तक यूं ही एक दूसरे से हज़ार किलोमीटर दूर बैठ कर तस्वीरों में एक दूसरे को देखकर खुश रह पाते। मिलना ज़रूरी था, सो शेखर कोलकाता आया। उस दिन तो श्रेया के पैर मानों जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। दोनों ने पूरा दिन एक दूसरे के साथ ही बिताया। उसे ऐसा लग रहा था मानो उसे अपने हिस्से की सारी खुशियां मिल चुकी हो।
पर कहते हैं ना, सच्चा प्यार कभी आसानी से नहीं मिलता। प्रेम के रास्ते में रुकावटें तो आती ही हैं। दोनों मिल चुके थे। साथ जीने के सपने भी देख लिए थे। पर ईश्वर को शायद कुछ और ही मंजूर था।
श्रेया के पिता की कार एक्सिडेंट में मौत हो गई और घर की बड़ी बेटी होने के कारण घर की सारी ज़िम्मेदारियां उसके कंधों पर आ पड़ी। दो छोटे भाई - बहन और मां को अब उसे ही संभालना था। भाई, उज्जवल, सातवीं कक्षा में था और बहन, अवनी, ने दसवीं की परीक्षा दी थी। प्रेम से भी पहले कर्तव्य आता है, सो लग गई श्रेया अपने कर्तव्य निभाने में। वह घर की माली हालत सुधारने और परिवार को संभालने में इस तरह व्यस्त हुई कि अब शेखर से भी बात कम ही होती थी।
मेडिकल की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब शेखर ने उससे कहा कि वह घरवालों को अपने और उसके प्रेम के बारे में बता दे। तो श्रेया ने यह कहते हुए मना कर दिया कि घर की पूरी जिम्मेदारी उसी पर है। ऐसे में वह कैसे सब से अपने और उसके रिश्ते की बात कर सकती है।
शेखर बार बार कहता रहा और श्रेया बार - बार टालती रही। आखिर एक दिन शेखर ने उससे उसका अंतिम निर्णय पूछ ही लिया।
" श्रेया, क्या हमारे रिश्ते का कोई भविष्य है भी या नहीं ?"
श्रेया कुछ देर चुप होकर कुछ सोचती रही। फिर बोल पड़ी, "शेखर, तुम अपनी जगह सही हो और मैं अपनी जगह। तुम हमारे रिश्ते को एक नाम देना चाहते हो और वो सही भी है। पर मेरी अपनी कुछ मजबूरियां है और मैं अभी तुम्हारे साथ नहीं आ सकती। मैं यह भी नहीं कहूंगी की तुम मेरा इंतज़ार करो, क्योंकि मुझे खुद भी पता नहीं है कि मुझे कितना वक्त लग जाएगा।"
शेखर की आंखों में अब आंसू थे। उसने रुंधे हुए स्वर में कहा, "ऐसा तो मत कहो श्रेया। मैं जानता हूं कि तुम इस वक़्त मेरे साथ नहीं आ सकती पर तुम्हारा इंतज़ार करने का हक तो मत छीनो मुझसे। मैं बिना किसी शिकायत के अपनी पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे इंतज़ार में गुजार सकता हूं।"
उसकी बातें सुनकर श्रेया की भी आंखे नम हो गई। पर खुद को संभालते हुए उसने कहा, "नहीं शेखर। मैं तुम्हारे साथ अभी नहीं आ सकती। पर मुझे कोई हक नहीं है कि मैं तुम्हारी जिन्दगी के साथ खेलूं। तुम शादी कर लो और अपना परिवार शुरू करो। कह देना बहुत आसान है पर यूं अकेले जीवन नहीं गुजारा जाता।"
अब तक शेखर ने श्रेया का हाथ पकड़ लिया था और बेबस निगाहों से श्रेया की ओर देखते हुए बोला, " ऐसा मत करो मेरे साथ श्रेया। किस बात का बदला ले रही हो मुझसे। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा। अगर कोई नाम नहीं दे सकते हम इस रिश्ते को तो फिर ऐसे ही सही पर अपने साथ होने का एहसास तो मत छीनो मुझसे।"
श्रेया मजबूर थी। वह नहीं चाहती थी कि शेखर अपना भविष्य उसके इंतजार में खराब कर ले। आखिर यही तो होता है प्यार। जिसमे दोनों को अपनी नहीं एक - दूसरे की खुशियों की फ़िक्र होती है।
श्रेया ने अपना हाथ छुड़ाया और दोनों हाथों को जोड़ते हुए कहा, " प्लीज़ शेखर। मेरी बात मान लो। जाओ और जाकर अपनी दुनिया बसाओ। मेरे लिए अपना भविष्य मत खराब करो।" इतना कहकर भारी क़दमों से श्रेया वहां से चली गई।
उसके बाद कई बार शेखर ने उसे कॉल किया पर श्रेया ने कोई बात नहीं की। फिर दो महीने बाद श्रेया ने बैंगलोर में एक जॉब के लिए अप्लाई किया और फिर जॉब मिलते ही बंगलौर शिफ्ट हो गई। उसने अपना फ़ोन नंबर भी बदल लिया था। उसने यही उम्मीद की थी शायद कोई कॉन्टैक्ट नहीं रहेगा तो हारकर शेखर भी मूव ऑन कर ही लेगा।
दिन, महीने और फ़िर साल यूं ही बीतते गए और दोनों ना कभी मिले और ना ही कभी बात ही हुई। ना उसे पता था कि शेखर क्या कर रहा है और कहां है और ना ही शेखर के पास उसकी कुछ खबर थी। लेकिन आज पांच साल बाद किस्मत ने एक बार फिर उन्हें मिला दिया था।
"यहां काफी शोर है। चलो वहां चलकर बात करते हैं।" शेखर ने पूल की तरफ इशारा करते हुए कहा।
वे दोनों पूल के पास वाले सोफे पर बैठ गए। कुछ देर तक दोनों बस एक - दूसरे को देखते ही रह गए। दोनों के पास कुछ कहने के लिए जैसे शब्द ही नहीं थे। श्रेया जैसे किसी कशमकश में थी कि थी कैसे पूछे की शेखर ने शादी कर ली है या नहीं।
आखिर शेखर ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, " तो बताओ, तुम बैंगलोर में कैसे ?"
"मेरी जॉब लग गई है यहां। पिछले पांच सालों से यहीं हूं। तुम बताओ कुछ अपने बारे में ?" श्रेया ने अप्रत्यक्ष रूप से पूछने की कोशिश की।
शेखर ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, "बस वैसा ही हूं, जैसा पहले था।"
"शादी - वादी तो कर ही ली होगी अब तक। कभी मिलाओ अपनी वाइफ से।" श्रेया ने अनजान बनते हुए कहा।
"अरे मैं तो कब से रेडी हूं शादी के लिए। बस लड़की ही नहीं मान रही।" शेखर ने श्रेया की आंखों में देखते हुए ऐसे कहा मानो कोई जवाब तलाश रहा हो।
उसे इस तरह देखते हुए देख श्रेया एकदम से झेंप गई। उसने झट से अपनी पलकें झुका ली। उसे लगा मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
"घर पर सब कैसे हैं ? अवनी की भी पढ़ाई पूरी हो गई होगी ना अब तक तो ? और उज्जवल, वह क्या कर रहा है आजकल ?" शेखर ने फिर एक बार बात - चीत जारी रखते हुए कहा।
"हां अवनी ने एम.बी.ए ख़तम कर लिया है और पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रही है। अब उसकी शादी के लिए मां लड़का देख रही है। अच्छा लड़का मिलते ही उसकी शादी कर देंगे। उज्जवल का भी आईआईटी में दाखिला हो गया है।"
"चलो अच्छा है। अवनी पढ़ाई पूरी हो गई है और अब कोई अच्छा लड़का भी मिल ही जाएगा। अवनी है ही इतनी होनहार। उज्जवल भी आइआइटी ख़तम कर ही लेगा। फिर उसकी भी लाइफ सेटल हो ही जाएगी। और तुम श्रेया, तुम कब कर रही हो शादी ? कोई अच्छा लड़का मिला कि नहीं तुम्हें ? शेखर ने हंसते हुए पूछा।"
श्रेया चुप ही रही। फिर कुछ सोचकर थोड़ा सकपकाते हुए बोली, "अच्छा मैं चलती हूं। एलिना मुझे ढूंढ़ रही होगी।" और उठकर जाने ही लगी थी कि शेखर ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया।
"तुम अब भी कुछ नहीं बोलोगी श्रेया ? और कितनी परीक्षा लोगी मेरी ? प्लीज़ आज तो कुछ बोलो। इस तरह हमारा मिलना शायद भगवान का संकेत ही है श्रेया। ईश्वर के इशारे को समझो श्रेया और मान जाओ। आज मना मत करो।"
श्रेया ने डबडबाई आंखो से पलटकर शेखर की तरफ देखा और फिर गले लग गई। आखिर उनके प्यार को मंज़िल मिल ही गई थी। उनका प्रेम जीवन की इस अग्निपरीक्षा में खरा उतरा था।