अग्नि की चीख़
अग्नि की चीख़
उसकी करूण चीख से गांव वालों का जमावड़ा लग गया, मानो कोई मदारी अपना बंदर का नाच दिखाने आया हो। यह करूण भभक्ति हुई चिल्लाहट थी, रामानंद नामक जाने-माने जमींदार की पुत्री मयूरी की। उनका आवास महल से कोई कम ना था, असंख्य नौकर चाकर की फौज भी तैनात थी।
इन सब की खर्च की पूर्ति किसान के पसीने भरी मेहनत से उपजा जमीदार का सूद (ब्याज ) से चलता था। कुछ किसान कर्ज न चुकाने के कारण नौकर का काम भी संभाल रहा था। पुत्र शिक्षा के लिए विलायत रवाना हो चुका था। मयूरी को घर के चौखट से बाहर पैर का छाप छोड़ने की अनुमति ना थी, ना ही पढ़ाई करने की। अनुमति भी थी तो सिर्फ प्रातः काल में जब सारी गांव की महिलाएं खुले में शौच जाया करती थी। वह खुद बहुत भोली व सरल थी।
मां की अनुपस्थिति में नौकरों के कामकाज में भी हाथ बंटाया करती थी। घड़ी की सुई चलती गई, न जाने कितने किसान नौकर की फौज में तैनात हो गए। कितनों किसानों ने तो आत्महत्या करना ही मुनासिब समझा। मयंक जिसकी शादी मयूरी से होने वाला था, शहर में सरकार का नौकर था।
पिता माथुर साहब थोड़े ज्यादा ही पैसों के भूखे थे। उनके अपने समाज व आस पड़ोस में किसी से ना पटती थी। समाज की सारी रीति रिवाज़, परंपराओं को दरकिनार करते हुए अपनों को आधुनिक पुरुष की संज्ञा से स्वयं को अलंकृत करते थे।
मयंक के पिता माथुर साहब द्वारा रामानंद साहब से मोटी रकम की मांग की गई। मांग की गई क्योंकी लड़का सुंदर व सरकारी नौकर था, अच्छा सा घर मकान। शादी बड़े ही खिटपिटाहट ढंग से संपन्न हुई, चूंकी माथुर साहब को अनुमानित रकम से कम प्राप्ति होने पर बरात का खाना ही ना खाया और बेटे की शादी करने से इनकार कर गए। वह तो शुक्र है दूल्हा राहुल का जिसने अपने पापा को समझा-बुझाकर शादी संपन्न करवाया।
मयंक शादी के बाद अपनी ड्यूटी (कर्तव्य ) निर्वहन करने शहर चला गया। इधर मयूरी एक सुघड़ गृहिणी का परिचय देते हुए अपने सास और ससुर की खूब सेवा सुश्रुषा किए जा रही थी। किंतु उसे माथुर साहब की दहेज की ताने कभी-कभी इतनी विचलित कर देती थी कि मानो बंदूक की गोली हृदय से जा टकराई हो।
मयूरी अपने प्रियतम (पति) से इस बारे में कुछ करने की जतन भी करती तो उलट में राहुल मयूरी को ही डांट लगा देता। प्रशासनिक लापरवाही के कारण राहुल को दो चार महीने से वेतन का भुगतान भी नहीं हुआ था। इसलिए वह पैसा घर मे भेजने में असमर्थ था।
इधर माथुर साहब अपने ऐशोआराम और लखनवी जिंदगी के कारण आर्थिक तंगी को निमंत्रण दे बैठे। आर्थिक तंगी ने माथुर साहब को इतना विचलित व क्रोधित कर दिया कि दिन भर में हजारों बार दहेज के ताने और ब्याज के साथ दहेज लेने की बातें मयूरी से करने लगे।
माथुर साहब चाहते थे कि मयूरी अपने भाई से कुछ पैसा मांगे ताकि उनकी आर्थिक तंगी दूर हो जाए। मयूरी अपने भाई से पुनः माथुर साहब के लिए दहेज लाने में असमर्थ थी। क्योंकि माथुर साहब यदि पाक शब्दों में कुछ उधारी या मदद की बात करते तो शायद मयूरी भी अपने भाई को पत्र लिखती।
किंतु माथुर साहब की दहेज की रेकनी ने तो मयूरी का जीना हीं दुश्वार कर दिया।सहसा एक दिन माथुर साहब शराब के नशे में धुत मयूरी के दरवाजे खटखटाने लगे। मयूरी जागी तो मालूम हुआ कि माथुर साहब मयूरी के खानदान वालों को गाली अनवरत उगले जा रहे हैं। कभी-कभी मयूरी को भी गाली दे बैठते। मयूरी को भी क्रोध आया और वह भी शायद कुछ प्रतिउत्तर दे बैठी थी। यही प्रतिउत्तर माथुर साहब को नहीं भाई और नशे व दहेज़ की धुत मे झट से केरोसिन नामक यमराज मयूरी पर उड़ेल डाला। जब तक मयूरी भागने की कोशिश करती तब तक माचिस की तिल्ली ने उसे पकड़ लिया और अग्नि भी मयूरी को आवेश मे लेने के बाद चीख़ उठी। मयूरी तड़प रही थी और लोग फटती निगाहों से बस निहारे जा रहे थे। भला अग्नि की आगोश से कौन गले लगने जाता?
