अभी या कभी नहीं ??
अभी या कभी नहीं ??


भले ही आधुनिक युग में इंसान ने कई अविष्कारिक वस्तुओं का निर्मांण कर लिया हो , कई मुद्राएं प्राप्त कर वो धनवान भले ही बन गया हो , लेकिन सत्य यही है क़ि, वह आज मुद्रा के लोभ में इतना अँधा हो चुका है क़ि उसे आज अपना परिवार भी अपना नहीं लगता। वो भूल गया है क़ि वो कौन है एवं उसे ईश्वर ने किसी नेक काम के लिए इस मायारूपी संसार में भेजा है।आज हमारी सरकार कहती है -
३० रुपया प्रतिदिन कमाने वाला नागरिक दरिद्र नही है, वो ये क्यों नहीं समझते क़ि मात्र ३० रूपये कमाने वाला दो वक्त की रोटी भी स्वयं पेट भर नहीं खा पाता, तो वो अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेगा?
प्रतिदिन वो वस्तुएं जिनकी हमारे देश को खुद ज़रूरत है, उन्हें हम निर्यात करते हैं और स्वयं मोटा अनाज शेष रख, अपने ही देश में आयात करते हैं । हम ये क्यों नहीं समझते क़ि स्वयं हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है। तो फिर क्यों ???
अवैध तरीकों से कमाए गए काला धन को स्वयं अपने ही देश से निष्कासित करके विदेशों में रखने के बजाये हमें उससे जरूरतमंदों की जरूरतें पूरा करना चाहिए , गरीबजन की सेवा करनी चाहिए, रोगियों -कोढ़ियों के लिए अस्पताल खुलवाने चाहिए , अनाथ लोगों के लिए अनाथाश्रम , विद्यालयो की व्यवस्था करनी चाहिए। अमीरी -गरीबी के आधार पर शिक्षा शुल्क होना चाहिए , न क़ि जाति के आधार पर !!
हम सब जानते हैं , समझते भी हैं ; फिर भी न जाने क्यों अपने ही देशवासियों की मदद करने से पहले इतना सोचते हैं ?
आज हम सब अपने लिए सोच रहे हैं, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता , पर इन सबसे हम अपने ही आने वाले भविष्य को स्वयं ही अन्धकार में धकेल रहे हैं, ये शायद हमें आज समझ नहीं आएगा , पर एक दिन जरूर आएगा। इन तथ्यों पर प्रकाश तो कई बार पड़ा है ,पर जब तक हमारे अंदर स्वयं ही इन सोच का उजाला नहीं होगा, तब तक, न ये देश सुधर सकता है और न ही कोई इसे सुधार सकता है।
अतः जागें, अपनी इस सोच को जगाएं और एक सच्चे देशभक्त बनकर देश से हर बुराई को मिलकर मिटायें।