आर्त भक्त
आर्त भक्त
किसी वन में एक मस्त हाथी रहता था, कहा जाता है कि उसमें दस हजार हाथियों के बराबर बल था।बली समझ के अनेकों हाथिनियों ने उसको अपना पति बना रखा था। अनेक हाथियों के झुंड के झुंड हर समय उसके पीछे पीछे चलते थे और उसकी आज्ञा पालन करते थे। हथिनियाँ भी अनेक प्रकार से अपने प्रेम का परिचय देती रहती थीं।
इस तरह अपने व अपने साथियों के बल पर गर्व किए हुए हुए हाथी राज निर्भय होकर वन में विचरा करते, उनको कभी सपने में भी एक ख्याल नहीं आता था कि उनसे कोई शक्तिशाली जीव ड्स संसार में है।
एक दिन इन सबों ने जल विहार करने का इरादा किया। एक सरोवर पहुँचे। अपनी- अपनी हथिनियों को लिए हुए अनेक हाथी जल- क्रीड़ा करने लगे।
जिस समय यह हाथीराज अपनी पत्नियों के साथ किलोलें कर रहे थे, और मस्त हो रहे थे, एक मगरमच्छ ने अंदर ही अंदर आकर इनका का पाँव पकड़ लिया। परंतु यह भी साधारण ताकतवर नहीं थे। मगरमच्छ को खींचते हुए जल के बाहर आ गए ,लेकिन थोड़ी देर पीछे हुए मगरमच्छ इनको फिर पानी में घसीट ले गया। इस तरह बड़ी देर तक दोनों में खींचातानी होती रही।
इनके साथी थोड़ी देर तक तो किनारे पर दूर खड़े हुए इनको हिम्मत देते रहे परंतु जब उनको यह निश्चय हो गया कि अब यह मगरमच्छ बिना प्राण लिए पीछा नहीं छोड़ेगा तब एक-एक करके वहाँ से रुखसत होने लगे। इसी तरह हथिनियों ने भी साथ छोड़ दिया।
इस तरह असहाय छोड़कर सबको जाते हुए देख उस हाथीराज के ह्रदय में बड़ा ही क्षोभ हुआ, उन सब की मित्रता का परिचय अब उसको जाकर मिला ,परंतु साहस से फिर भी मुकाबला किया, लेकिन जब थोड़ी देर पीछे ही उसको यह जान पड़ा कि उसकी अपनी शक्ति भी उसका संग छोड़ रही है तब तो हिम्मत टूट गई और घबरा गया।
हाय ! इन दुष्ट कुटुम्बियों और मित्रों ने कैसी विपत्ति में मेरा साथ छोड़ा है। मेरा आश्रय इन्हीं सब पर था परंतु समय पड़ने पर एक भी काम नहीं आया। हाय ! मेरी हथिनियाँ भी मुझे मरा हुआ समझ छोड़ कर चली गईं। सच है संसार सब धोखा है। इसमें सब धोखेबाज ही बसते हैं किसी की प्रीति सच्ची नहीं है।खैर ! वह तो दूसरे थे- जिस बल को मैं अपना समझता था जिसके कारण मुझे बड़ा गर्व था, जिसकी सहायता से मैंने पृथ्वी हिला डाली थी, आज न जाने हुए भी वह कहां चला गया। मालूम होता है उसमें भी स्थिरता नहीं थी वह भी अभी तक के लिए ही होगा।हाय ! अब क्या करुँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है अभी-अभी मगरमच्छ प्राण खींचे लेता है और मैं कुत्ते की मौत मर कर पड़ा -पड़ा इस तालाब में सडूँगा।
चारों ओर से निराश हुआ और घबराया हुआ वह हाथीराज-थोड़ी देर के लिए बेहोश हो गया उसकी बुद्धि शून्य हो गई और उसकी समझ में ही कोई बात नहीं आई कि अब मुझ को क्या करना चाहिए। परंतु यह दशा अधिक देर नहीं रहने पाई थी कि एका -एक उसके कानों में आवाज आई "घबराओ नहीं भगवान से सहायता मांगो ! वह दीनों के नाथ हैं, वह दुखियों की सहायता को हमेशा तैयार रहते हैं, जो करुण स्वर से उनको बुलाता है तो उसी दम आकर उनके कष्ट का निवारण कर देते हैं।"
यह शब्द कहीं बाहर से नहीं आये थे उसके अपने शुभ संस्कारों की आवाज थी। अब उस के सतकर्मों का उदय हो चला है और मोह व अज्ञान घट रहा है।
हाथी की समझ बड़ी तीव्र होती है, वह सारे पशुओं से अधिक ज्ञानी कहा जाता है फिर जिस पर ये हाथी तो और भी संस्कारी था। इस आकाशवाणी के सुनते ही एकदम उसकी रगों में बिजली दौड़ गई उसको अपना कर्तव्य याद आ गया। सूँड़ एक कमल -पुष्प तोड़ लिया और ऊपर को मुंह उठाकर विनती करने लगा।
हे ! प्रभु भक्त वत्सल प्रभु !मैं किस मुँह से विनती करूं कि आप मेरी सहायता करें, मैं अभी तक मोह जाल में फंसा हुआ संसारी कीड़ा बना रहा, कौन-सा पाप कर्म होगा जो हमने ना किया हो, आप भक्त वत्सल कहे जाते हैं परंतु मैंने भूलकर भी कभी आपको याद नहीं किया, फिर कैसे कहूँ कि आप मेरी रक्षा करें- लेकिन अब कहीं ठिकाना नहीं है अब तो मन दौड़-दौड़ के आपकी ओर ही जाता है, और आप के ही चरणों में लोटना चाहता है, आइए ! जल्दी से मुझे विपत्ति से छुडाइए, मैं आपकी शरण हूँ इत्यादि।
रो-रोकर किए हुए इस आर्तनाद ने और करुणा स्वर की चिंघाड़ ने हाथी के मुख से निकलकर सीधी बैकुंठ में जाकर ठोकर खाई ,भगवान का सिंहासन हिलने लगा वह एकदम उठकर भागे और उस झील पर पहुंचकर मगरमच्छ को मार डाला और हाथी की प्राण रक्षा की। इस प्रकार इसी भक्ति को "आर्त भक्ति" कहते हैं। यह हाथी आर्त भक्त कहलाये जाने का अधिकार रखता है। और यही कथा पुराणों में गज और मगरमच्छ की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है।
