Thakur Vishal

Drama

4.7  

Thakur Vishal

Drama

आंवले की मिठास

आंवले की मिठास

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कहानी काल्पनिक है समस्या हालात स्थिति शब्दों की भावना जज़्बात जीवंत है।

इतवार का दिन था गर्मियों का दिन था सो दिन भी कुछ ज्यादा ही लंबा था। मसला ये था की बिजली का कट था क्यूंकि लाइन में कुछ दिक्कत थी तो ये पूर्व निर्धारित कट था लेकिन मै इस बिजली के पूर्व निर्धारित कट से अनजान था सो रात को फोन पर देर तक सोशल मीडिया का और नेट का इस्तेमाल करके देर से सोना हुआ मसला ये हुआ कि जब सुबह आंख खुली तो मोबाइल पर लाल बत्ती ब्लींक कर रही थी जो बोल रही थी कि मालिक नाश्ता चाहिए भूखे पेट रात से नींद नहीं आई है सीधा सरल शब्दों में मेरा फोन चार्जिंग सुविधा मांग रहा था जैसे ही चार्जर लगाकर स्विच ऑन किया तो करंट की कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर सस्ती मानो यूं गायब हुई जैसे मै किसी लंबी वॉक से लौट आया हूं बहुत बार चार्जर पीन दुबारा लगाकर हर जतन किया तब पता चला की बिजली नहीं है और छानबीन की तो बिजली के कट का राज सामने आया। अब मानो शाम के पांच बजने का इंतजार सुबह आठ बजे ही शुरू हो गया हो।

नहा धो कर पूजा पाठ नाश्ता सब करके भी वक़्त 09.30 से उपर नहीं खिसका 

फ़िर कमरे में चारपाई पर बैठी दादी पर एकाएक नज़र गई और अचानक से ख्याल मानो बन्द पड़ी बिजली की तारों से गुजरता हुआ मेरे जहन में आया कि मैं सुबह से फोन में चार्जिंग न होने बिजली न होने से बेचैन हूं और ये उस दौर से है जब ये सब कुछ था ही नही जिंदगी तब भी थी आज हमने जरूरत से ज्यादा बेमतलब के शौक को खुद पर हावी कर दिया है।

दादी पूरा दिन उसी चारपाई पर बैठी कभी माला घुमाती है पूरा दिन व्ही गुज़ार देती है कोई बात करने की जरूरत नहीं समझता मेरी माता जी और पिता जी को छोड़कर हम अपने दूर के इंटरनेट से बने दोस्त से नजदीक हो गए हैं और साथ वाली चारपाई पर बैठी अपनी जड़ों से दूर हो गए हैं वो दूर वाला दोस्त जो खुद को दिखा रहा है वो वैसा है भी या नहीं है भी तो भी हर चीज अपनी जगह और अपनी तय हद तक ठीक है लेकिन किसी भी चीज़ का हम पर हावी होना गलत है।

मैं गया और दादी से पूछा दादी ये कोरोना क्या है आप तो जानते ही होंगे दादी बोले बेटा ये कुरोना और कुछ नहीं उतावलापन है इसकी दवा बस चैन और स्कुन है।

फ़िर मुझे एहसास हो गया कि ये जो हमारे घरों के आंगन में चारपाई पर बैठे होते हैं न ये बनी बड़ी बड़ी फीस और बिना बड़े से डोनेशन के संस्थान है ये सीखाने समझाने को तैयार बैठे हैं देर बस आपके पूछने की है हमसे कोई एक ही बात दूसरी बार पूछ लेे तो गुस्सा सातवे आसमान पर होता है और इनमें सब्र इतना है कि जब तक आप समझ न लो ये समझाते जाएंगे बिना चेहरे पर एक शिकन के।

बस उसके बाद न मुझे पांच बजने का इंतजार था न बिजली आने का मुझे बस मेरी और दादी की बहुत सी बातें दिन भर चलती रही।

देर शाम तक दादी के चेहरे पर चमक देखने लायक थी और मुझमें में भी सब्र का बीज पड़ चुका था। क्यूंकि इस नए पन्ने की शुरुआत मैने कैडबरी नहीं आंवले के साथ की थी और उसकी मिठास धीरे धीरे ही असर करती है। अब इंतजार था रोज़ ऐसी फुर्सत के बहानो का जो मैं अब बिजली जाने और फोन की बैटरी डेड होने का इंतजार नहीं करूंगा।


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