Neelam Singh

Inspirational

4.9  

Neelam Singh

Inspirational

आकस्मिक ख़ुशियाँ

आकस्मिक ख़ुशियाँ

5 mins
844


हमारी ज़िन्दगी में हर रोज़ ख़ुशियों के ना जाने कितने पल आते हैं और उनमें से ज़्यादातर पल जो होते हैं, वो आकस्मिक ख़ुशियों के रूप में आते हैं और हम अपनी ज़िन्दगी की उलझनों में कुछ इस क़दर उलझे होते हैं कि इन आकस्मिक ख़ुशी के पलों पर हमारा ध्यान ही नहीं जा पाता। कल शाम ऑफ़िस से लौटते वक़्त कुछ ऐसे ही पलों से रु-ब-रु हुई मैं और वो पल इतने ख़ास बन गये मेरे लिए कि उसे चाह कर भी भूल पाना नामुमकिन है।


मैं और मेरी सहयोगी घर जाने के लिए ग्रामीण सेवा का इंतज़ार कर रहे थे। तभी एक बिल्कुल खाली ग्रामीण सेवा हमारे सामने आ कर रूकी। यूँ तो बिल्कुल खाली ग्रामीण सेवा में मैं कभी नहीं बैठती थोड़ा असुरक्षित लगता है खाली गाड़ी में जाना कहीं भी, पर पता नहीं कैसे आज बैठ गयी। शायद कुछ ऐसा होने वाला था आज जो पहले कभी नहीं हुआ था।

ड्राइवर एक बुड्ढे से अंकल थे। थोड़ी देर बाद ही मेरी सहयोगी अपने स्टॉप पर उतर गई। मैंने उसको बोला "तेरा किराया मैं दे दूँगी" और अंकल को भी बोल दिया। अब पूरी ग्रामीण सेवा में मैं ही अकेली थी। रोड पर बारिश की वजह से बहुत लंबा ट्रैफिक जाम लगा हुआ था। वैसे भी मुंडका एरिया का ट्रैफिक जाम मशहूर है लोगो को जाम से निकलने में कई बार घंटो भी लग जाते है।

मैं स्वर्ण पार्क से थोड़ा आगे ही पहुँचीं थी तो, ट्रैफिक देखते हुए मैंने अंकल को बोला - "अंकल रेड लाइट से गाड़ी मोड़ कर मुझे दूसरी तरफ उतार देना।" तो अंकल ने पूछा "आपको आगे जाना है ना?" तो मैंने बोला 'हाँ जाना तो वहीं है पर इतना ज्यादा ट्रैफिक है और सिर्फ़ मेरे अकेले के लिए आपका नुकसान होगा इतनी देर जाम में फँसे रहकर सिर्फ 5 रुपये के लिए इतनी आगे तक मुझे ले कर जाना पड़ेगा इसलिए मैं पैदल ही चली जाऊँगी।" तो अंकल ने बोला "नहीं मैडम जी जहां तक आपसे बात हुई है मैं आपको वहीं तक ले जाऊँगा। आप पैसेंजर है और हमारे लिए भगवान जैसी हो।"

तो मैंने बोला "अरे अंकल आपने इतना बोल दिया यही काफी है। मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि आप मेरी वजह से जाम में फँसे रहो और एक 5 रुपये के लिए इतनी आगे तक जाओ। मैं आराम से पैदल जा सकती हूं ज्यादा दूर नहीं अब मुंडका।"

पर वो बोले "नहीं मैं आपको ऐसे बीच रास्ते नहीं उतार सकता। मैंने कहा "कोई बात नहीं आप आगे से गाड़ी मोड़ कर और सवारी भर लीजिए। मैं आसानी से पैदल आ सकती हूँ।" थोड़ा मेरी बात मानते हुए उन्होंने बोला "चलो देखते है।"

मुंडका से थोड़ा ही पहले एक एग्जामिनेशन सेंटर है जहां आये दिन कोई ना एग्जाम होता ही रहता है और फिर वहां से लोग पैदल ही मेट्रो स्टेशन चले जाते है घर वापस जाने के लिए। कभी किसी को वहां से रिक्शा करते हुए नहीं देखा था मेट्रो स्टेशन के लिए।

अभी मेरी और अंकल की बहस खत्म ही हुई थी तभी एग्जामिनेशन सेंटर के बाहर एक लड़की ने पूछा "अंकल मेट्रो स्टेशन चलोगे?" अंकल ने ख़ुशी से बोला "हां हां चलूँगा।" तभी दो लड़कियाँ और आयी और फिर देखते - देखते पूरी गाड़ी भर गई। मुझे अब तस्सल्ली हुई की चलो अब अंकल का घाटा नहीं होगा मुझे मुंडका तक ड्रॉप करने में और अंकल ने मेरी तरफ देखते हुए बोले-"देखा मैडम जी हो गया न काम!" मैंने भी तस्सल्ली की मुस्कुराहट के साथ हामी में सर हिला दिया।

ज़रा सी देर में मेट्रो स्टेशन आ गया। सारे पैसेंजर अपना अपना किराया अंकल को दे कर जाने लगे। एक दो लड़कियों ने तो मुझसे पूछा "कितना देना है तो मैंने कहा पाँच रुपये।" फिर अपना और अपने सहयोगी का किराया दस रुपये अंकल को देने लगी, तो अंकल ने बोला "आपसे किराया नहीं लूँगा।" मैंने बोला "क्यों? किराया तो लेना ही पड़ेगा" और फिर उनको पकड़ाने लगी दस रुपये। अंकल बोले "नहीं आप मेरी गाड़ी के लिए लकी हो आपसे नहीं लूँगा किराया।" मैंने बोला "अगर आप किराया नहीं लोगे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा" पर वो भी बहस में लगे थे कि "नहीं लूँगा।"

तभी गाड़ी में बैठी दूसरी लड़की ने पूछा "कि क्या हुआ किराया क्यों नहीं ले रहे आप से??"

तो मैंने उस लड़की को हमारी सारी कहानी शॉर्टकट में सुनाते हुए कहा "ये मुझे लकी मान रहे है इसलिये किराया नहीं ले रहे", तो उसने मुस्कुराते हुए कहा "ओह तो ये बात है" और अपना किराया दे कर चली गई।

मैंने फिर एक बार किराया लेने के लिए अंकल को बोला पर अब तो उन्होंने दोनों हाथ जोड़ लिए और भावुक हो गए और बोले "प्लीज्! आप रोज़ आया करो मेरी गाड़ी में।" अब मैं समझ ही नहीं पायी की क्या करूँ, फिर मैंने बोला "किराया नहीं तो मेरा धन्यवाद तो ले लोगे ना??" फिर वो मुस्कुरा दिए। तो मैंने उनको "थैंक यू" बोला और अपने अपने रास्ते चल दिये। मुझे बहुत खुशी हो रही थी जो मैं सिर्फ महसूस कर पा रही थी शब्दों में बयान करना मुश्किल था और एक तस्सल्ली थी कि अंकल का नुकसान नहीं हुआ ठीक ठाक पैसे उन्हें मिल गए थे।

अब वो दस रुपये पर्स में वापस रखने का मन नहीं किया तो मैंने उसका एक भुट्टा ख़रीद लिया घर में बच्चे के लिए।

घर आते ही ये किस्सा बहन को सुनाया। मैं इस यादगार घटना को कभी नहीं भूलना चाहती इसलिए काग़ज़ पर इस किस्से को उतार दिया।

मुझे महसूस हुआ कि जो लोग दूसरों के भले के लिए सोचते है भगवान जी उनके भले के लिए ज़रूर सोचते है जैसे कि मैंने अंकल के लिए सोचा की उनका नुकसान ना हो, अंकल ने मेरे लिए सोचा कि मुझे इतनी दूर पैदल चल कर ना जाना पड़े। तो फिर भगवान जी ने हमारे बारे में सोचा - अंकल का नुकसान भी नहीं हुआ और मुझे पैदल भी नहीं जाना पड़ा।

धन्यवाद भगवान जी मुझे ऐसी भी खुशी देने के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational