पहला पत्र माँ के नाम
पहला पत्र माँ के नाम
शादी के बाद मेरा पहला पत्र माँ के नाम,
माँ आप तो मेरी पसंद ना पसंद सब अच्छे से जानती हो तो बात ये हैं कि जैसा जीवनसाथी मैं चाहती थी आपके दामाद बिल्कुल वैसे नहीं हैं।
मेरे तो सारे सपने ही बिखर गए, जिन बातों से, जिन आदतों से मुझे नफरत थी भगवान ने वो सारी खराब बातें मुझे मेरे पति के रूप में मुझे दे दी। मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था पर क्या पता था कि किस्मत से बढ़कर कुछ नहीं होता। काश आप लोग मुझे इस शादी से निकाल पाते कई सालों से चुपचाप सब अत्याचार सहती आ रही हूं कि मेरे मुंह खोलने से मेरे मम्मी पापा की बदनामी हो जाएगी। पर आप तो मेरी माँ हो ना बिना बोले मेरा दर्द समझ क्यों नहीं जाती।
कई बार आपको बताने की कोशिश की पर बता नहीं पायी कि आपकी बेटी सुखी नहीं है पर तुम्हारी चिंता देख कर हमेशा मुस्कुराती रही। इसी तरह पन्नों पर अपना दर्द लिखती रही पर बोल नहीं पायी। आप तो मेरी माँ के साथ साथ मेरी सहेली भी हो ना इसलिए अपना दर्द आपके साथ बाँटना चाहती हूं पर फिर सोचती हूं कि मेरा दर्द सुनकर आप दुखी हो जाओगी और मैं आपको दुखी नहीं देखना चाहती शायद हर बार की तरह ये पत्र भी आपको भेजने की हिम्मत नहीं हो पाएगी, क्योंकि मैं अपनी माँ को दुःखी नहीं देख पाऊँगी। हर बार की तरह आज भी ये पत्र माँ की जगह माता रानी के चरणों मे रख दिया। अब जो किस्मत को मंजूर होगा वही होगा मेरे साथ।