आधुनिक कुन्ती
आधुनिक कुन्ती
कुन्ती तो आप सभी को याद है ना, पंच कन्याओं में से एक थी। जो कि शूरसेन की पुत्री, वसुदेव की बहन और श्रीकृष्ण की बुआ थी। कुन्ती चिर कुमारी थी। कुन्ती भोज ने कुन्ती को गोद लिया था। और उन्हीं कुन्ती को ऋषि दुर्वासा ने वरदान दिया था कि अपनी साधना के बल पर वह संतान को जन्म दे सकती हैं।
इस वरदान को आजमाने के लिए कुन्ती ने सूर्य भगवान की साधना की और कर्ण को जन्म दिया। लेकिन क्योंकि कुन्ती कुवाँरी थी ,लोक भय से कुन्ती ने अपने अबोध शिशु को टोकरी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया था। और कर्ण का पालन -पोषण एक सूत दंपति अधिरथ और राधा जी ने किया। कुंती ने तो उस बालक को गंगा में प्रवाहित कर दिया, मगर वह बालक अपनी पूरी उम्र कुंठित मानसिकता से गुजरता रहा। सारी उम्र उसे सूत पुत्र ,यह सुनकर गुजारनी पड़ी। इतना ही नहीं अंत में भी कुन्ती ने उससे अपने शेष पाँच पुत्रों को न मारने के लिए बाध्य होना पड़ा। ये कैसा न्याय था एक माँ का ?
अब आप सोच रहें होंगे कि ये सब तो हम सभी जानते हैं ,आप ने इसमें क्या नई बात बताई है। मुझे इस घटना को याद करके आज के असंख्य कर्ण और कबीरों की दुर्दशा दिल को झकझोर रही है। जो माँ अपने लाल- ललना को जन्म तो देती हैं। मगर आज एक नये चलन के कारण उन अबोध शिशुओं को आजीवन के ताने सुनने के लिए क्यूँ कहीं का नहीं रहने देती।
जी हाँ दोस्तों मैं बात कर रही हूँ ,आजकल की उस भयावह स्थिति की जिसमें माता- पिता के विचार न मिलने के कारण स्वयं तो या तो तलाक ले लेते हैं। परन्तु अपने बच्चों की परवरिश के बारे में एक बार भी नहीं सोचते।जिसमें बालक चाहे दोनों में से किसी एक के पास रहे , मगर उस बालक का बौद्धिक विकास, कुंठित मानसिकता का शिकार बन जाता है। सारी जिंदगी वह समाज के ताने सुनता रहता है कि तेरी माँ या पिता तुझे छोड़कर भाग गए। और हमारे ऊपर एक बोझ छोड़ गए।
हम समाज के लोग तो बोल देते हैं, परन्तु वो बालक किस प्रकार अंदर ही अंदर मरता है हररोज कभी ये अंदाजा लगाया है हम मे से किसी माता -पिता ने, या समाज ने कि वह बालक एक बार नहीं हर समय मरता है। और वही बालक आगे चलकर एक हिंसक इंसान बनता है।
ऐसी कितनी घटनाएं हमारे आसपास घटित होती है। कुछ विरले ही होते हैं जो अपनी संतान की खातिर अपने अहम् को एक तरफ रखकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं।
एक दर्द और टीस उठती हैं क्यूँ हम कुन्ती बन रहे हैं एक वरदान को जाँचने की खातिर अपनी ही संतति का जीते जी गला घोंट रहे हैं ? विचार करने योग्य है यह प्रश्न। मुझे ये पता नहीं कि अपनी बात आप लोगों को समझा पाई या नहीं ? परन्तु आप लोगों से विनम्र निवेदन है कि इस विचार पर गोर करें और सुझाव अवश्य दें। जिससे किसी बालक का जीवन नरक न बन जाए।