याद जब प्रियतम की आई
याद जब प्रियतम की आई
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बादल सी आँखों से आज फिर वर्षा हुई
शरीर में एक झंकार महसूस हुई
दिल की तारें एक बार फिर छिड़ी
कदम एक बार फिर मचलाए
याद जब प्रियतम की सताए
वह चपला फिर कमज़ोर पड़ी
समुन्दर सा विशाल हृदय लिए
एक बार फिर रो पड़ी
हरी हरी घास पर
ठहाकों का मोर भी नाचा
पर वर्षा लगातार होती रही
दांतों का मेंढक भी कौंधा
अपनी सफेदी लिए
हाथों की छतरी बारिश से
एक बार फिर बची
ख्यालों की झोपड़ी में
सहारा लेने एक बार फिर गयी
यूँ बाढ़ आ गयी
फफकना रुपी गर्जना हुई
बादल ने कौतूहल मचाया
मन बेचैनी से पगलाया
पकड़ों की भूक तक मिट गई
याद जब प्रियतम की आई।