व्यंग्य है प्रचंड है
व्यंग्य है प्रचंड है
व्यंग्य है प्रचंड है
घूमा अंग अंग है
काफ़िरों की टोली है
सर्पदंश बोली है
शूल विकराल है
जिंदगी का काल है
छिड़ा फिर युद्ध है
कौरवों की चाल है
गीदड़ों का घेरा है
माली भी सपेरा है
बदला सूर्यास्त है
सांझ अब सवेरा है
फूल है या शूल है
ज़हरीले डंक है
व्यंग्य है प्रचंड है
घूमा अंग अंग है
चीखे है कानों में
लोटती है गूंजती है
मन भंवर ज्वाला में
फेंकती है झोंकती है
जिंदगी की बेदी पर
शांति का शंख है
व्यंग्य है प्रचंड है
घूमा अंग अंग है
