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Kamlesh M.

Inspirational Others

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Kamlesh M.

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वर्तमान भारत, गांधी और भगतसिंह

वर्तमान भारत, गांधी और भगतसिंह

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बढ़ता है ये ग़ुबार क्यूं ?

कैसा चलता यह कारवां ?

ना आस कोई, ना साथ कोई,

दिशाहीन पथ पर युवा।


जिसने चाहा था अंतस से,

स्वर्णिम भारत का सपना,

बाँट के उसके नाम तले,

गर्त में धकेल दी सब आस्था।


क्यूं नाम है होंठो पर भगत का ?

क्यूं नहीं है उसके बोल अभी ?

नकार दिया था उसने उनको भी,

जो व्यर्थ पिटते थे ढोल कभी।


कि क्रांति नहीं आये समाज को तोड़ने से,

कि क्रांति नहीं आये लाशों को गिराने से,

कि क्रांति नहीं आये व्यर्थ लहू बहाने से,

राजगुरु-सुखदेव संग क़ुरबानी दी उसने।


पर देखकर केवल एक ख्व़ाब,

कि आये क्रांति तो विचारों में,

कि आये क्रांति तो कामों में,

कि आये क्रांति तो ज़बानों में।


यहाँ बैठे हैं अब भगत के,

नाम के इतने ठेकेदार,

क्रांति शब्द से अनभिज्ञ हैं,

हैं सारे के सारे गद्दार।


रुकता क्यूं नहीं ये सिलसिला,

मंदिर-मस्जिद के जाप का,

घर की माता-बहनें रोती,

और ये ठेका लेते हैं एक गाय का।


अपनी स्त्री के जीवन को,

बना के बैठे हैं सब नरक यहाँ,

किन्तु मुरादों के लालच में,

जाते वैष्णों देवी और मक्का।


क्यों नाम है होंठो पर गाँधी का ?

क्यों नहीं उतरता जेहन में ?

गाँधी-गाँधी जपते-जपते सबने,

मिटा दिया है उसको अंतस से।


हो ज़ोर तो लगाओ,

सत्य-अहिंसा-मानवता का फिर मोल,

खाओ लाठी ज़रा माथे पर,

फिर नहीं बजाओगे तुम ढोल।


है बाकी गर थोड़ी भी हिम्मत तो,

लाठी पर लाठी झेलो,

जो बैठे हैं बस तुमको बांटने,

क्रांति से लाठी उन पर ठेलो।


ना चाहा था किसी ने ये कभी,

कि हिन्दुस्तान के टुकड़े हों,

लेकिन बहकाकर सबको अब तक,

इन नेताओं ने पीया लहू।


है ज़मीर बाकि अब भी तो निकलो घर से,

निहत्थे बड़ो मंदिर-मस्जिद की ओर,

लग जाओ गले निर्भीक होकर के

आप ही भुला दो पुराने सब शोर।


सही मायनों वाली क्रांति तभी देश में आएगी,

नेता बैठेगा गुंगा होकर राजनीति ना चल पायेगी,

किस बात को कहकर फिर मांगेगा तुमसे वोट

अपनी ही करनी से मौत ज़बान पर आएगी ।



क्यों लड़ें मरें कटें इस तरहा ?

क्यों नहीं रहें सदभावो से ?

हो सके तो पूछ लेना बस इतना,

अपने अंतर के मानव से।


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