वर्षा (कुण्डलिया छंद)
वर्षा (कुण्डलिया छंद)
1
वर्षा की बौछार में, रिमझिम का संगीत।
मन हरियायी दूब सा, बरसे पावन प्रीत।
बरसे पावन प्रीत, भ्रमर मधुवन में गाएँ।
पाकर पावस नेह, नदी नाले इतराएँ।
मन तो मस्त सुशील, धरा का तन मन हर्षा।
जीवन का आधार, बरसती छम छम वर्षा।
2
गर्जन बादल का हुआ, मन में मची हिलोर।
रिमझिम बूँदें लिख रहीं, गीत छंद चहुँओर।
गीत छंद चहुँओर, हरित पावन सी धरती।
महके डाल कदम्ब, महक चम्पा की झरती।
पावस बूँदें अर्घ्य,धरा का होता अर्चन।
इंद्रधनुष के मध्य, मेघ का होता गर्जन।