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Kanha Samoriya

Abstract

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Kanha Samoriya

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वर्षा आगमन

वर्षा आगमन

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आ पवन के झौको से ठंडी बून्दो की वह धारा

मिट्टी से आऐ खुशबु और जग हो जाऐ अन्धियारा

कड़-कड़कता मेघ बाजे और मोर हो जाऐ नचयारा

आ पवन के झौको से ठंडी बून्दों की धारा।


झूम उठी है वंसुधा मन में और भीग गया हर गलियारा

फुदक-फुदक कर मेंढक टर-टर मना रहे हैं जश्न यारा

आ पवन के झौकों से ठंडी बून्दों की वह धारा

हो गयी है हरी-भरी यह धरती और निकल रही है हर धारा।


कल-कल करके वह है बहता वो जल है नदियारा

आ पवन के झौको से ठंडी बून्दो की वह धारा

हो रही है खेतो मै बोंवनी और हो रहा है हरीयारा

किसानो के संपनो का यही तो है उदीयारा।


आ पवन के झौकों से ठंडी बून्दों की वह धारा।


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