वो लड़की.....
वो लड़की.....
बेगुनाह होकर भी
हर सितम वो चुप चाप सह जाती है
कहने को बातें उसके पास भी है खूब
पर कहे भी तो किस से
कभी समझ ही नहीं पाती है
दूसरे के दोषों की
गुनहगार वो क्यों यू कहलाती है
दुनिया की बातों से
वो कभी खुद को मायूसी ना
करना चाहती है
पर करे भी तो क्या
हर मोड़ पर आकर
वो "JUDGE" कर दी जाती है
ज़रा ऊँची आवाज़ में जो अपनी बात रखे
तो बदतमीज़ कहलाती है
जो गुमसुम रहे तो
दोषी ठहराई जाती है
क्यों एक लड़की जीवन के हर मोड़ पे
यू आंकी जाती है
