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विसर्जन

विसर्जन

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कर दो विसर्जन,

मन के उन सभी विकारों का,

जिनके लिये कभी खुद को,

क्षमा नहीं कर पाते हो।


कर दो विसर्जन,

तन की धूल भरी,

अहंकारी चंचलता का,

जिसके प्रतिबिंब में खुद को,

ढूंढ नहीं पाते हो।


कर दो विसर्जन,

आत्मा के उन कष्टों का,

जो उसे तुमने ही दिये हैं,

और दोष मढ़ा है दूसरों पर।



कर दो विसर्जन,

ईश्वर की पूजित सुसज्जित प्रतिमा का,

और अवतरित होने दो,

मनुष्यता के सभी आभूषण,

एक एक करके।


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