Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

विरह

विरह

1 min
363


अक्सर जब मैं

बैठती हूँ

विचारों की नदी पर बहती नौका पे

चुनकर साँसों के मोती

मौन की शान्त लहरों संग,


लेकर आस्था की पतवार

तो कोई अनजान सी

अबोली शक्ति

महावर रचे पैरों से

उतार देती मुझ को

शून्य की धरा पर।


जहां पाती हूँ

खुद को

खटखटाती मैं

अनहद के द्वार का सांकल

किसी तेज पुंज प्रिय

के संग मिलने को।


चढ़ाने को प्राणों का

शाल्मली पुष्प

और फिर

बह उठते हैं

आँखों के रास्ते 

दो अबोले आँसू।


मानो कहीं से

छू कर गया हो

मुझको मेरा प्रियतम।


सच में

प्रेम की गहनता का उपाय

मिलन ही नहीं

विरह भी है।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Rajni Sharma

Similar hindi poem from Romance