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Nigar Yusuf

Inspirational

4.2  

Nigar Yusuf

Inspirational

वीरांगना

वीरांगना

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कच्चा दूध हूँ,

मुझे अब उबलना होगा,

जो भी है फटा चिटा मुझ में,

अब उसे सिलना होगा।


कोरी किताब हूँ,

भूले ना कोई जिसे

ऐसा जबरदस्त मुझे,

कुछ तो लिखना होगा।


सन्नाटे नहीं मुझे शोर चाहिए,

राते चुभती हैं,

मुझे उजली भोर चाहिए।


पथरीली है सड़क,

पर दिल में है धड़क,

छोटा आँगन नहीं,

मुझे पूरा मैदान चाहिए।


दुश्मन मेरा भय,

मेरे अंदर कहीं लुकाछिपा,

चल बिगुल बजा,

आज हम लड़ ले जरा।


भीतर भय है डरा, हाँ,

हाँ मुझसे डरा,

ला पटक दूँ उसे आज,

ना सके वो मुझे आँखें दिखा।


तलवारें खंजर तेज कर लूँ,

धरा समंदर एक कर दूँ,

अक्ल के तीरों से मैं

चक्रव्यूह के सारे चक्र तोड़ दूँ।


बवंडर है आगे तो ‌क्या,

समंदर है आगे तो क्या,

तूफान हूँ,

जिसे हिला ना कोई सका,

मैं वो चट्टान हूँ।


थकूँ मैं, रुकूँ भी,

पर कभी वापस ना मुड़ूँ,

लक्ष्य ललकार रहा हर क्षण,

उठूँ, चलूँ मैं बढूँ।


गला सूख रहा मेरा,

पर छुना है मुझे अंतिम रेखा

इक प्यासा सैलाब हूँ,

कायर नहीं वीरांगना हूँ।


देखो क्षितिज मैंने छू लिया,

जीत का झंडा गाड़ दिया

आज हारा खड़ा है शून्य सा,

जीत के हर प्रतिशत में मैं हुँ।


सूरज ने है सलाम किया,

तारों ने भी नगाड़ा बजा दिया

जो शक करते थे कल तक,

उन्होंने आज कांधों पर बैठा लिया।


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