विधाता की बही
विधाता की बही
तुम्हारे बैंक के खातों पर ये जो बोझ भारी है,
कई उम्मीद तोड़ी है, कई दुनिया उजाड़ी है,
मिटा कर चैन लोगों का सुकूँ तुम पा नहीं सकते,
विधाता की बही में कर्म का किस्सा उधारी है।
किया जो कुछ भी है तुमने चुकाना है वहां जाकर,
वहां सबकुछ बराबर है भले हो शाह या नौकर,
चुकाना मोल लाशों के जो कयी जीवन के साये थे,
कई सपने सजाकर जो शहर की ओर आये थे।
किसी के पैर के छालों को भी महसूस कर लेना,
नयन की अश्रु सरिता में बने प्रतिबिम्ब धर लेना,
लहू के दाग सड़कों से मिटाये जा नही सकते,
निवाले पटरियों के भी भुलाये जा नहीं सकते।
निवाले बेंचकर तुमने जो ये दुनिया सजायी है,
गिरी हैं जब कयी लाशें हवेली जगमगाई है,
मनाकर मानवी मातम तुम निज संसार ले बैठे,
भुलाकर दर्द लोगों का के तुम व्यापार कर बैठे।
किसी के दर्द से खुशियां, संजोयी जा नहीं सकती,
न हो जिस आंख में पानी, भिगोई जा नहीं सकती,
किया जो कुछ भी है तुमने ज़रा एहसास कर लेना,
गर मिल जाये कुछ पानी तो इन आँखों मे भर लेना।
बदलता है समय सबका समय की किस से यारी है,
विधाता की बही में कर्म का किस्सा उधारी है।
