नया सवेरा
नया सवेरा
रात की खामोशी के बीच,
निस्तब्ध निगाहों में,
सहसा फूटता है
हसीन स्वप्न का एक अंकुर,
ये स्वप्न है
एक नवीन शुरुआत का,
जब जबरन झांकती हैं
उषा की किरणें,
काले अंधियारे
बादलों की ओट से,
मानो कह रही हों,
उठो और आगे बढ़ो,
बदल दो जीवन की
सारी परिभाषाएं,
पकड़ो और थामे रहो
उम्मीदों के ये दामन,
बटोर लो बिखरी हुई ख़ुशियाँ,
संवार लो अपना
बिखरा हुआ घर, आंगन,
सींचो फिर से
अपने हौसलों को,
परिश्रम के निर्मल नीर से,
क्यों विचलित होते हो,
संसार के इस शापित पीर से,
वक्त ही तो है, बदलेगा।
आशाओं के आंचल से ही
नया सवेरा निकलेगा।