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Ajay Nigam

Tragedy

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Ajay Nigam

Tragedy

वैश्या

वैश्या

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परत दर परत मैं रोज़ ही आधी कर दी जाती हूँ

रोज़ नए ग्राहक के लिए मैं ताज़ी कर दी जाती हूँ

तब मेरा बदन बस खिलौना बन कर रह जाता है

लोगों के हाथ का बस पुतला बन कर रह जाता है।


जब मैं अपने बच्चों की शक्लें जहेन में लाती हूँ

तब मैं अपने बदन की आहुति देती जाती हूँ

जब रोज़ ही मेरे बदन से वस्त्र उतारे जातें हैं

तब मैं ग्राहक के सामने बेचारी सी हो जाती हूँ।


परत दर परत मैं रोज़ ही खरोंची जाती हूँ

रोज़ एक ग्राहक की रखेल बन कर रह जाती हूँ

जब मैं रोज़ ही असेहेनीये पीड़ा से घिर जाती हूँ

तब मैं अपने बच्चों की शक्लें जेहेन मैं लाती हूँ।


जब मैं संसार की नज़र मैं बहुत ही गिर जाती हूँ

जब रोज़ ही मैं एक बुरी गाली बन कर रह जाती हूँ

तब मैं अपने बच्चों की शक्लें जेहन मैं लाती हूँ

पेट पालने को वैसे तो मैं एक माँ ही कहलाती हूँ।


लेकिन संसार की भाषा में मैं वैश्या ही बन जाती हूँ

 मैं वैश्या ही बन जाती हूँ।


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