Swati Sagar Singh
Inspirational
तूफ़ान जब आते हैं , सिर्फ तबाही मचाते हैं
और वो इंसान ही क्या जो डर कर छिप जाए
अगर हौसला हो बुलंद तो तूफ़ान की क्या मजाल
जो आपको छू कर निकल जाए!
मां
मोड़
पापा के साथ ब...
पापा
तूफ़ान
तपाकर अपने आप को मौका दो निखरने का तपाकर अपने आप को मौका दो निखरने का
झुक जायेगा पर्वत भी जब सुनेगा पिता के बाहुबल की गाथा। झुक जायेगा पर्वत भी जब सुनेगा पिता के बाहुबल की गाथा।
प्रेम पियासी सीप में उज्जवल सी श्वेत सच्चा मोती बन जाए। प्रेम पियासी सीप में उज्जवल सी श्वेत सच्चा मोती बन जाए।
अपने आगमन पर अभिमान मत कर, हर शै वक्त का निवाला है। अपने आगमन पर अभिमान मत कर, हर शै वक्त का निवाला है।
जब हम आप सब जिम्मेदार नागरिक हैं, तो जिम्मेदार बनकर भी दिखाइए। जब हम आप सब जिम्मेदार नागरिक हैं, तो जिम्मेदार बनकर भी दिखाइए।
दिल से जुड़े जो मन की वीणा के तार, छेड़ी ऐसी अद्भुत तान कि खुले मन के द्वार।, दिल से जुड़े जो मन की वीणा के तार, छेड़ी ऐसी अद्भुत तान कि खुले मन के द्वार।,
सब को तुम यह ज्ञान कराओ जीवन को तुम स्वर्ग बनाओ। सब को तुम यह ज्ञान कराओ जीवन को तुम स्वर्ग बनाओ।
पंत निराला से शुरू, देवी 'दिन' अज्ञेय। जयशंकर बच्चन बने, हिन्दी ह्रदय प्रमेय। पंत निराला से शुरू, देवी 'दिन' अज्ञेय। जयशंकर बच्चन बने, हिन्दी ह्रदय प्रमेय।
पर क्यों ज़मीन ढूँढ़ नहीं पातें? और आसमान चाहते हैं। पर क्यों ज़मीन ढूँढ़ नहीं पातें? और आसमान चाहते हैं।
पापा पर जितना भी लिखना चाहूँ कम है पापा आज इस दुनिया में नहीं है. पापा पर जितना भी लिखना चाहूँ कम है पापा आज इस दुनिया में नहीं है.
विष भरे अपमान दंश, छीन सकते जीवन कभी है? विष भरे अपमान दंश, छीन सकते जीवन कभी है?
आप कटु वचन बोलकर शत्रु न पैदा कीजिए। आप कटु वचन बोलकर शत्रु न पैदा कीजिए।
खाना माँ बनाती है, पिता की मेहनत होती है माँ के आगे छवि फिर उसकी क्यों गौण होती है खाना माँ बनाती है, पिता की मेहनत होती है माँ के आगे छवि फिर उसकी क्यों गौण ह...
मंज़िल चूमेगी पांव तेरे तू, तू अंत समय तक ना थकना। मंज़िल चूमेगी पांव तेरे तू, तू अंत समय तक ना थकना।
कबीर के विचारों में असीम निश्छल नमी है। कबीर के विचारों में असीम निश्छल नमी है।
खुशियाँ तो हर किसी के दिल में बहुत पास होती हैं। खुशियाँ तो हर किसी के दिल में बहुत पास होती हैं।
तुम्हारे चाहे या न चाहे अहसासों को कब पहचाना है- तुम्हारे चाहे या न चाहे अहसासों को कब पहचाना है-
हर्षिता लिखती है बेबाक सच हो होगा शर्मसार आज भी नही तो कब होगा। हर्षिता लिखती है बेबाक सच हो होगा शर्मसार आज भी नही तो कब होगा।
लिखना भी नहीं आता है ,ना गीत कोई गढ़ पाता हूँ। लिखना भी नहीं आता है ,ना गीत कोई गढ़ पाता हूँ।
कांटों के बीच रहकर भी चेहरे पे उसके रहती है सदा मुस्कान, कांटों के बीच रहकर भी चेहरे पे उसके रहती है सदा मुस्कान,