STORYMIRROR

तू और लहर

तू और लहर

1 min
13.9K


खोया था वह अपने सपनों के बादल में,

अनजान था, खोया अपने आकर्षण में।

अपने भाग्य पर बिना संदेह किया भरोसा,

खेला भाग्य ने भी अपने चक्रव्यू का पासा।

 

सोया था, लिपटा अपने स्वप्न की चादर में।

अनजान था, वो उन उठती लहरों से,

अनजान, उन आने वाले मुसीबत के बवंडरों से।

कहाँ पता था, कि जब आँख खुलेगी प्रभात मे,

---अंधकार में सरसरा रहा होगा वो

---परेशानी जो उसके सर पर है,

    बिना जाने ही जूझ रहा होगा वो।

 

आसमाँ से ऊँची, पर इरादों की नीची,

ऐसी थी वो लहर

ना मन से सच्च, ना दिल का पक्का

ऐसा था वो आदमी।

 

लहरें तो कब की नौका फेंक चली,

पर मुसीबत अभी तक नहीं थी टली।

क्योंकि आनी तो एक और लहर थी,

कठिनाई की एक और कहर थी।

 

परन्तु…

अपनी भूल स्व सीख उसको लेनी न थी,

बची हुई जान उसे बचानी न थी।

उड़ा ले गई उसे धारा,

शोक मे भीगा, सारा का सारा।

 

मोड़ सकता था नौका,

मिल सकता था जीने का एक और मौका,

बच सकता था उन लहरों से।

पर आलस में हाथ डोला नहीं,

मन भी उसका मेहनत करने को बोला नहीं।

 

जान कर नही अनजान बना,

सो अंजाम उसका होना ही था बुरा।

जो जिया वो आँखे मूँद कर,

सो मरा वो आँखे फ़ाड़ कर।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Aneesh Mohan

Similar hindi poem from Inspirational