तुम और इंतजार
तुम और इंतजार
किसी इंतज़ार को भी
इंतज़ार होगा
अपने इंतज़ार का...
उन उम्मीदों का
स्वयं के विश्वास का...
सूखे झीलों के हिस्सो में
अब कहानियाँ नही,
मेघों का इंतजार होगा..
सूखो का नहीं,
बारिश का इकरार होगा..
खामोशियाँ नहीं,
बूँदों का इजहार होगा..
उन बरसते लम्हों में ..
उन मचलते लहरों में..
स्वयं को पा लेने में ...
स्वयं से मिल जाने में ...
एक परिधि में बँध
अपनी नियति को तलाशते
जलायश के हिस्से में
इंतज़ार भी इंतज़ार से
कम क्या होगा...
जाने कितने एहसास
दफन हुए होंगे
और कितने जी उठे होंगे
इंतज़ार के हक में..
जीने के तप में...
जिसके मिल जाने से
जिसको पा लेने से
बह निकले होंगे
सारे विकार...
सारे अवसाद...
अधूरे किस्से...
इंतज़ार के हिस्से में...
कितनी कहानियाँ गढ़ी जाएंगी
और कितनी पढ़ी...
कितनी उम्मीदें फिर जनम लेंगी
और कितना बाकी
अधिकार के हिस्से में...
इंतज़ार के किस्से में...
इंतज़ार के इंतज़ार में...!