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Shishpal Chiniya

Abstract

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Shishpal Chiniya

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टूटे कांच बिखरे पत्थर

टूटे कांच बिखरे पत्थर

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इस जमानें का मैनें , वो हाल देखा है।

मैनें इस जमानें को,   बेहाल देखा है।


हर एक ऊपज खेत कों मैनें , बंजर पडे़ देखा है।

ईश्क की म्यान में नफरत के, खजंर पडे़ देखा है।

तलबदार तो देखे है मैनें बहुत 

पर हर तलबदार के हाथ में , मैनें मजंर पडे़ देखा है।


सोचा था आसानी से पा सकु़ंगा , मजीलों को।

क्या पता था तोड़ना पडे़गा हर एक जजीरों को 

समझ ही बैठा था खुद को पुरा 

इस कम्बख्त राह पर , हर एक को अधुरा खडा़ देखा है़।



मुश्किलों से सभालां है मैनें ,खुद को इन नजारों से।

देखा है खरीद करते इन गुगों को बोलते बाजारों सें।

मोह्ब्बत के आईने

के सामने मैनें नफरत का अँधा खडा़ देखा है।


इस जमानें में किसी को,मशहुर होने का शौक नही है ।

शायद इस जमानें को ,मगरुर होने का खौफ नहीं है ।

झुठा है हर एक ख्याल मेरा 

वक्त पर गाडरों को शेर के काफिलों में खडा़ देखा है।


इस जमानें का मैनें , वो हाल देखा है।

मैनें इस जमानें को,   बेहाल देखा है।





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