तलाश
तलाश
है हासिल सब कुछ ज़माने में
मन क्यों भटकता है फिर
किसकी तलाश है
एक अनबुझी प्यास है
नज़रों के आँगन में।
ढूँढती है आँखें
आईने में
ख़ुद के वजूद को
सबका कुछ न कुछ होकर रह गया मैं
ख़ुद का क्या रहा
ये एक यक्ष प्रश्न है
दिल ढूँढ रहा है
मेरे जिस्म में मुझे
वक़्त की रवानी में
ज़िन्दगी की पानी में
मिलेगी कहीं तो
क़दमों के नीचे ज़मीं
फिसलता हुआ ही सही
खड़ा तो हो पाऊँगा
अपने आप के साथ
मैं।