स्त्री
स्त्री
स्नेहमयी ममता की मूरत सजी हैं ऐसी धरा पर
अपने परिवार की गाथा सदा जिसके अधरों पर
त्याग,प्रेम,विश्वास की ऐसी पायी उसने धरोहर
हर एक रिश्तों का असर दिखें उसके विचारोंपर
हर साँस में बुने अपने सपनें छोडे बलीवेदी पर
परिवार के आगे कुछ नहीं चढ़ जाये हसतें वेदी पर
दो कुलकी मर्यादा संभालें वो प्यार से जीवन भर
हर रिश्तों के रंग में रंग जायें सुंदर चित्रसी रंगकर।
