स्त्री को पुरुष मत बनाओ
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
उसे कोमल ह्रदया ही रहने दो
जीवन के सुंदर समतल में
पियूष श्रोत सी बहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
उसे प्रतियोगी मत बनाओ
अर्धांगिनी ही रहने दो
पुरुष के पूर्णत्व सहगामिनी
ही रहने दो
सम्वेदनाओं की सरिता सी
बहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
विधाता ने गढ़ा है उसे सौंदर्य,
लज्जा, त्याग, तपस्या की मूर्ति
क्यों देते हो उसे बार-बार
चुनौती
स्त्रीत्व छोड़ पत्थर ह्रदया
बन जाने की
उसे संसार का मधुर संगीत
ही रहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
आंचल में ममता की धार
दुख सह देती नवजीवन का
उपहार
इसी पर टिका है, समाज और
परिवार
उसे ममता की मूरत ही रहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
अपने सपनों की बलि वेदी पर
बुनती है वह अपनों के सपने
हजार
ग़म सह, देती सबको ख़ुशियाँ
अपार
उसे गृहस्थ धर्म की महा
तपस्विनी ही रहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
उसकी स्त्रीत्व में है, जग का सार
उसके पुरुषत्व में है, मात्र
प्रलयकाल
स्त्रीत्व का सम्मान, पुरुष का
कर्तव्य महान
उसे अनुपम, विलक्षण, नायाब ही
रहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
मत दो चुनौती उसके स्त्रीत्व
व स्वाभिमान को
मत करो मजबूर ,काली ,
रणचंडी बनने को
मत समझो उसकी कोमलता
को कमजोरी
उसे लक्ष्मी, अन्नपूर्णा ,सरस्वती
ही रहने दो
स्त्री को पुरुष मत बनाओ
उसे चाहिए मात्र दो मीठे शब्द
जिनमें हो एहसास और आभार
बस इतने में वो कर देती है
तुम पर जीवन न्यौछार
लो शपथ रहे सलामत ,स्त्री का
सम्मान और स्वाभिमान
यही है महिला दिवस की सच्ची
सार्थकता, सच्चा सार
स्त्री को पुरुष मत बनाओ