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Rahul Yadav

Romance

5.0  

Rahul Yadav

Romance

सफर और बरामदा

सफर और बरामदा

2 mins
305


ये सफ़र तो चलता रहेगा पर मोहब्बत तुम आखरी थी,

इस भीड़ में हाथ तो बहुत मिले पर गैर हाजिरी तुम्हारी थी।


लाख कोशिशों के बाद भी भूला न सका शायद वो यादें इतनी प्यारी थी

उस काली रात चेहरे पर उदासी,आँखों में वारि और दिल थोड़ी भारी थी।


हक़ीक़त में पा न सका तुझे पर कुछ ख़्वाब हमने भी साँवरी थी

ये बात उन दिनों की है जब हम तुम्हारे और तुम हमारी थी।


ये इश्क़ तो मुकम्मल न हुआ पर मोहब्बत तुम आखरी थी,

इस भीड़ में हाथ तो बहुत मिले पर गैर हाजिरी तुम्हारी थी।


और सबके इश्क़ में एक ऐसी जगह जरूर होती है

जिसे वो कभी भूल नही पते ,और मेरे इस इश्क़ के दास्तां में याद आती है,

वो गुलाबी घर के पहले मंज़िले पर बना वो बरामदा और बरामदे में खड़ी वो।


तो आखिर के कुछ शब्द उस प्यारी सी जगह के लिए,

मैं किसी और की एक बात न सुनने वाला,

उसकी हर एक बात सुनता था।


वो हर रोज़ अपने बरामदे पर खड़ी मुस्कुरा देती थी,

और इस ज़ेहन में प्यार का सैलाब उफनता था। 


पास से उसके गुजरने पर कम्बक्त ये दिल भी कुछ यूं थरथराता था,

जैसे मानो सदियो से ये उस सकस को पहचानता था।


इस दिल का नाजाने क्यों तुझसे अलग सा नाता था

उस रास्ते से गुज़रते मैं अपना दिल,

उसी बरामदे पर छोड़ आता था,

और कल साथ खड़े उस बरामदे पर मुस्कुराना चाहता था।


मैं किसी और की एक बात न सुनने वाला,

उसकी हर एक बात सुनता था।

वो कहीं दूर खड़ी मेरा नाम लेती थी,

और ये दिल उसके प्यार में हमारा आने वाला कल बुनता था।


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