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Rashika Vats

Abstract

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Rashika Vats

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संघर्ष जीवन का

संघर्ष जीवन का

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क्या मैं हार मान लूं ,

या रार ठान लूं,

समझाऊं या समझ जाऊं,

लड़ बैठूं या रूठ जाऊं,

नियति से वाद करूं,

या सब कुछ स्वीकार करूं,

कभी तार्किक हो जाऊं,

कभी संतुष्ट रह जाऊं,

सही, गलत का भेद करूं

या सामान्य हो जाऊं,

कभी खुद से लडू,

कभी खुदा से लड़ जाऊं

कभी जमीन पर रहूं

कभी आसमान छू जाऊं,

क्या कहूं, क्या सोचू , क्या करूं ,

 या कुछ भी ना होकर एकांत हो जाऊं ,

 कभी जीवन जीयूं, कभी मरण हो जाऊं,  

क्या करूं जो खुद से खुदा हो जाऊं ,

 क्या करूं जो खुद से खुदा हो जाऊं!


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