समय को इज़्ज़त दीजिए
समय को इज़्ज़त दीजिए
समय को इज़्ज़त दीजिए ********** समय-समय की बात है, जो अक्सर हम लोगों से सुनते और खुद भी कहते रहते हैं, पर समय को अहमियत अपने अनुकूल समय में ही देते हैं, प्रतिकूल समय में तो समय को जी भर कर कोसते हैं। कभी विचार किया है कि क्या अनुकूल समय आपके साथ रहने और खुशियांँ देने ही आया है, और वो आपको छोड़कर नहीं जाएगा, या प्रतिकूल समय सिर्फ दुख देने आया है और आपके साथ कुण्डली मार कर आपका हमसफर बन सदा के लिए साथ रह जाएगा? ऐसा तो कभी भी नहीं होता जो आया है, उसका जाना निश्चित है। कोई भी समय हो, उसको भी जाना ही है यही हाल सुख-दुख का है, दोनों में एक भी जीवन भर साथ नहीं देता है। फिर भी हम दोहरा मापदंड अपनाते हैं, क्योंकि हम सब समय की गति को समझना ही कब चाहते हैं? दोष देने के लिए समय और ईश्वर को सबसे अनुकूल और सरल पाते हैं, फिर भी समय को अनुकूल-प्रतिकूल के तराजू में तौलने से कहाँ बाज नहीं आते हैं? बेवजह समय की गति को हम पकड़ना चाहते हैं खुद को सिर्फ गुमराह करते हैं। वर्तमान समय भी चला ही जायेगा आने वाला समय का पहिया भी घूम जायेगा, फिर आपका हँसना रोने में और रोना हँसी में बदल जायेगा। अच्छा है वर्तमान समय को स्वीकार कीजिए खुश रहने के साथ समय को इज़्ज़त दीजिए, इससे आपका कुछ चला भी नहीं जायेगा पर समय को देखने का नजरिया जरुर बदल जाएगा, तब आपके साथ आपका हर समय भी मुस्करायेगा, और समय आपका हमसफर बन साथ निभाएगा। सुधीर श्रीवास्तव
