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समर्पण

समर्पण

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हे प्राण।

अपने विचारों का अथाह समुद्र लिये,

सफलताओं और असफलताओं के बीच,

मैं आता हूँ तुम्हारे पास

अर्पण कर तुम्हें

पाटा हूँ

एक अद्भुत अहसास

जिसमें

सुकून है, सुख है, शांति है।

तुम हरते हो मेरे मन के तिमिर को

देते हो - 'प्रकाश'

करते हो नव ऊर्जा का संचार

पाकर जिससे शक्ति अपार

लौट जाता हूँ अपने जीवन में

एक नई प्रेरणा, नये लक्ष्य, नये जोश के साथ।

मैं आऊँगा

बार-बार

तुम्हारे पास - क्यों कि

'तुम पूर्ण हो'

तुमसे मेरा जीवन पूर्ण है।


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