समाज
समाज
समाज को किसने बनाया है
क्या ये नहीं हमारे अपनो ने बनाया है
फिर क्यों समाज को एक बहाना बनाया है
हर बात में समाज को एक ताना बनाया है।।
समाज क्या कहेगा ये मासूमों के दिल में डर बिठाया है
ये क्या है पूछने पर इसे समाज का रूप बताया है
समाज का क्या एक रूप है
क्या किसी ने देखा समाज का हर रूप है
आपने समाज का क्या रूप देखा है।
मैंने समाज का वो रूप देखा है, जिसमें
एक चौखट से निकल लड़कियों को उड़ान भरते देखा है
समाज को उन्हें उनके हिस्से का आसमान देते देखा है
वहीं दूसरी चौखट से उन्हें अंदर खींच, उनके पंख कतरते देखा है
मैंने समाज का वो रूप देखा है।
किसी की खिलखिलाहट में परिवार को मुस्कुराते देखा है
किसी की सिसकियों को अंधेरे कमरे में घुटते देखा है
किसी का हाथ पकड़ समाज को उसे आगे बढ़ाते देखा है
किसी के पैरों में बेड़ियां डाल उनके सपनों को कुचलते देखा है
मैंने समाज का वो रूप देखा है
लड़के रोते नहीं हैं, ये बोल समाज को उन पर हँसते देखा है
कहीं रोते हुए लड़कों को सीने से लगाते देखा है
किसी को दरिंदा बन लूटते देखा है
किसी को फरिश्ता बन बचाते देखा है
मैंने समाज का वो रूप देखा है।
समाज को लोगों ने सिर्फ़ एक बहाना बनाया है
हर किसी ने अपने मतलब में समाज एक नया रूप बनाया है
हर नए नज़रिए ने समाज बनाया है
मैंने अपने नज़रिए से समाज को देखा है
मैंने समाज का हर रूप देखा है।।