सहर होने को है
सहर होने को है
गम खुशी से आज सर होने को है,
रात है बीती सहर होने को है।
तोड़ देेगी अब वो सारे दायरे,
बूंद थी जो अब बहर होने को है।
हुक्मरानों में मची इक खलबली है,
अब रियाया भी मुुखर होने को है।
दर्द के बालिश्त लंबे हो रहे हैं,
अब दवाओं सा असर होने को है।
छोड़ आए दूर हम तारीक़ियों को,
रौशनी में अक्स पर खोने को है।
क्या हुआ साहिल नहीं आता नज़र,
अब सफीनों पे बसर होने को है।
मंजिलें अब पा ही लेंगे हम "असीर"
भेद मंजिल-राह का खोने को है।।
