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vipin singh

Others

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vipin singh

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तलाश

तलाश

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मुझे तलाश है,

शायद,

किसी ठिकाने की,

जहाँ कि हवा में,

ऐसी ठंडक हो,

जो मन के हर कोने में भर जाए,

मन-मस्तिष्क थम जाए,

न कुछ भी सोचूँ मैं ।


न कोई जल्दी हो,

कहीं पे जाने की,

न कोई आतुरता,

कहीं से आने की,

न कोई डर हो,

किसी को खोने का,

न कोई ख्वाहिश हो,

किसी को पाने की ।


जहाँ लगे

शरीर मौसम है,

शरीर मिट्टी है,

शरीर बादल है,

जो कुछ भी दिखता है,

वही तो हूँ मैं

मैं ही हूं दिशा

मैं ही हूं वक्त

और मैं ही आकाश।

जहाँ हो एक तादात्म्य

मैं और मेरे बीच,

एक लय हो,

मगर 

स्थिरता हो,

निरपेक्ष स्थिरता,

जहाँ कुछ भी सापेक्ष न हो,

हर तरफ हो एक स्थिर निरपेक्ष,

अर्थात,

जो हो बस वही हो

और उसे देखने वाला 

कोई नहीं हो

और जहाँ 

कछ दिखे भी न ।

मैं रहूँ,

मगर,

खुद को न दिखूँ ,

न देखना ही चाहूँ,

चाहत नहीं हो ,

इच्छा नहीं हो,

अहसास नहीं हो,

शब्द नहीं हो,

अर्थ नहीं हो,

भाव नहीं हो,

परन्तु किसी वस्तु का,

अभाव नहीं हो,

शून्य नहीं

सम्पूर्णता चाहता हूँ ,

ऐसी सम्पूर्णता 

कि

कुछ भी सापेक्ष न रहे

परिवर्तन न हो

बिखर जाए चारों ओर,

एक परम निरपेक्षता, 

एक परमत्व,

एक सम्पूर्णता ,

न जिसके,

आगे कुछ हो,

न जिसके,

पीछे कुछ हो,

बल्कि, 

न आगा हो,

न पीछा हो,

मात्र विस्तार हो,

परन्तु,

इतना सूक्ष्म ,

कि जिसमें,

आयाम न हो,

बस हो ,

अस्तित्व 

परन्तु,

अस्तित्व का,

अहसास न हो,

ज्ञान न हो ।


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