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Shagufta K Qadri

Abstract

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Shagufta K Qadri

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मेरी पहचान मेरा हिन्दुस्तान

मेरी पहचान मेरा हिन्दुस्तान

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वखत मेरा चाहे आज कुछ ना हो

इस रंगीन ज़माने में

परचम जब भी लहराओगे

एक मेरा रंग भी साथ पाओगे


वतन पर मर मिटते है

वो अपनी खुशी से

जब भी अहल-ए-वतन पुकारोगे

आवाज़ बुलंद मेरी भी साथ पाओगे


खुशियों की सौगात सब साथ मानते हैं

त्यौहारों में देश सब साथ सजाते हैं

ये ऐसा देश है मेरा

जहाँ सब एक ही रंग में रंग जाते हैं


यहाँ पीरों की खिदमत में 

ना हिन्दू ना कोई मुसलमान कहलाता है

जहाँ गणेश चतुर्थी की तैयारियों में

एक मूर्ति बनाता, दूसरा मण्डप सजाता


ऐसा देश है मेरा 

जहाँ शमशान तक चलने वाले 

ना धर्म देख रुक जाते हैं

बस एक साथ वो आखरी कदम साथ निभाते हैं


यहाँ मज़हब नहीं बँटता 

यहाँ लोग नहीं बँटते

जब एक घर दर्द में होता है

वहाँ सब साथ निभाते हैं


जब देश कोरोना से जूझ रहा है

हर धर्म इंसानियत बन चुका है

तूफानों ने तोड़ना चाहा

फिर भी सब साथ रहे


जब घर बिखर रहे थे 

हिन्दुस्तान एक धर्म में बंध चुका था

जिनके आशियाने सलामत थे

वो न जाने कितनों के घर बन गए


यहाँ पहचान कर्म की है

यहाँ पहचान अपनेपन की है

यहाँ एक मुस्कुराहट पे रिश्ते निभते हैं

यहाँ हर पल खुशियों के मेले सजते हैं


दिल से दिल तक की कहानियाँ लिखी जाती है

यहाँ दर्द के साये में भी खुशियों की

महफ़िल सजाई जाती है।


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