Abhishek singh rawat

Abstract

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Abhishek singh rawat

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शिक्षक

शिक्षक

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नहीं बयाँ करने को कोई अल्फाज है

बदौलत शिक्षक के रोशनी में हम आज है।

 

कही भ्रम के सागर मे मै तैर रहा था

दूर से एक फरिश्ता देख रहा था

वो शिक्षक ही था जिसने डूबने से बचाया था।


रंगमंच पर जिंदगी का एक नाटक चल रहा था

वही रंगमंच दर्शकों को खुलेआम चल रहा था

वह शिक्षक ही था जिसने अंधे को प्रकाश दिखाया था।


कहां अक्ल  मुझ पत्थर में कहीं पढ़ा था बदतर मैं

 वह शिक्षक ही था जिसने तराश कर हीरा बनाया था

नहीं बयां करने को कोई अल्फाज है बदौलत 

शिक्षक के रोशनी में हम आज है।


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