STORYMIRROR

Abhishek singh rawat

Abstract

4  

Abhishek singh rawat

Abstract

शिक्षक

शिक्षक

1 min
276

नहीं बयाँ करने को कोई अल्फाज है

बदौलत शिक्षक के रोशनी में हम आज है।

 

कही भ्रम के सागर मे मै तैर रहा था

दूर से एक फरिश्ता देख रहा था

वो शिक्षक ही था जिसने डूबने से बचाया था।


रंगमंच पर जिंदगी का एक नाटक चल रहा था

वही रंगमंच दर्शकों को खुलेआम चल रहा था

वह शिक्षक ही था जिसने अंधे को प्रकाश दिखाया था।


कहां अक्ल  मुझ पत्थर में कहीं पढ़ा था

बदतर में वह शिक्षक ही था जिसने तराश कर हीरा बनाया था

नहीं बयां करने को कोई अल्फाज है बदौलत 

शिक्षक के रोशनी में हम आज है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract