शब्द....
शब्द....
शब्दों में ही छुपा सम्मान...
और शब्दों से ही होते अपमान।
कोई जो समझाए तो उपदेश बन जाते हैं...
और किसी को भेजो तो सन्देश बन जाते हैं।
बड़ों से मिले तो आशीर्वाद .....और छोटों से मिले तो प्यार कहलाते हैं।
मंदिर में पूजा आरती...
और जो रेडियो पर सुनो तो विविध भारती कहलाते हैं।
किसी को जो चुभ जाए तो सच...
और कुछ छुपाना हो तो झूठ बन जाते हैं।
जो निभाया जाए वो वचन...
और जो न निभाए वो धोखा कहलाते हैं
सच में इन शब्दों की माया बड़ी निराली है।
शब्दों के इन रूपों के मायाजाल में ही तो हम बंधे हैं ..
क्योंकि शब्द मुफ्त में मिलते हैं और अक्सर
मुफ्त की चीज़ों का उपयोग हम लापरवाही से करते हैं,
जो कभी- कभी बहुत महंगा पड़ता है।
संत कबीरदास ने कहा है -
"शब्द सम्हारे बोलिए, शब्द के हाथ न पांव।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।।"
इसलिए अपने शब्दों का चयन बहुत संभल कर कीजिए--
क्योंकि हमारे शब्द ही हमारे व्यक्तित्व को दर्शाते हैं।