शब्द हैं मौन
शब्द हैं मौन
क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,
शब्द ही जब मौन हैं ।
अपनों की इस दुनिया में
कहने को अपना कौन है?
दिल और दिमाग़ ने ख़ुद के बीच
खींच ली है एक लकीर
दिल की सुनें तो दिमाग़ है चुप
कुछ दिमाग़ ने कहा तो दिल मौन है
क्या लिखूँ,कैसे लिखूँ?
अपनी ही धड़कन सीने में
अब बोझ सी लगने लगी,
उतरे अब ये सांसों का क़र्ज़
बहुत बढ़ गया यह शोर है ।
क्या लिखूँ कैसे लिखूँ?
हर दिन नई आशा,
नया विश्वास, नई उम्मीद
दिन के ढलते ही ये सारे
होते चकनाचूर हैं।
क्या लिखूँ कैसे लिखूँ?
शीशे के हर टुकड़े में
अपनी ही छवि है मगर
किस टुकड़े में है असली सूरत
ये पहचाने अब कौन है?
क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
शब्द ही जब मौन है ।