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Avanti Bagul

Tragedy

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Avanti Bagul

Tragedy

शायद कल

शायद कल

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कागज़ की कश्ती थी, खेलने की मस्ती थी,

दिल ये आवारा था तितली जैसा निराला था

हर दिन एक नयी चाह नयी उम्मीद लेके जगता जो था।

अब ज़िन्दगी की उस उम्र में आये है की ना कागज़ की वो कश्ती रही,

ना खेलने की वैसी मस्ती रही।

दिल ये ठोकरे खाता फिर रहा है, 

हर दिन अब बस यही सोचता है की कल फिर आएगा नयी रौशनी लाएगा, 

शायद कल कुछ उम्मीद की किरण निखरेगी और में पहले जैसा तितली सा उड़ता फिरूंगा , 

शायद कल वो नादान बचपन जो अब इस जवानी के दलदल मे फंसा है फिर खिल आएगा। 



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