सब जरूरी नहीं
सब जरूरी नहीं
आदमी के लिए सब,
जरूरी नहीं।
स्वार्थ हित के लिए,
जी हुजूरी नहीं।।
भूख मिट जाती है,
खाके दो रोटियाँ।
काटते हो निरीहों की,
क्यों बोटियाँ।।
रक्त रंजित हो थाली,
जरूरी नहीं।
स्वार्थ हित के लिए
जी हुजूरी नहीं।
खुरदरी फर्श पर,
नींद आ जाती है।
ख्वाब सुन्दर सुहाने,
दिखा जाती है।।
मखमल सेज हो,
ये जरूरी नहीं।
आदमी के लिए
सब जरूरी नहीं।।