"सैनिक की प्रेमिका" Rajkanwar Verma
"सैनिक की प्रेमिका" Rajkanwar Verma
प्यार तो बेहद करती हूं तुम से,
फ़िर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों,
मां ने एक शेर को जन्म दिया,
पाला – पोषा और बड़ा किया,
अपनी ममता की छांव से दूर कर,
भारत मां की रक्षा के लिए कुर्बान किया,
फ़िर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों....
पिता ने अपने दिल को,
ना जाने कैसे कठोर बना लिया,
अपने कलेजे के टुकड़े को,
भारत मां के नाम कर दिया,
फिर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों....
बहन जो हर रक्षाबंधन के दिन,
अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं,
उस बहन ने अपने भाई की कलाई को,
देश की सारी बहनों के नाम कर दिया,
फ़िर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों...
एक भाई जिसके लिए तुम,
एक पिता के साएं जैसे हो,
उस भाई ने जिम्मेदारी का,
सारा भार अब खुद संभाल लिया,
फ़िर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों...
एक तरफ़ तुम्हारी पत्नी जिसने ना जाने,
तुम्हारे साथ कितने सपने सजाएं होंगे,
लेकिन हर सुहागन का सुहाग बच सके,
उसने अकेलेपन को गले लगा लिया,
फ़िर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों...
पूरे देश के परिवारों को,
तुम से ही बस एक उम्मीद हैं,
हालात चाहे जैसे भी हो,
तुम ढाल बनकर उन्हें बचाओगे,
फ़िर कैसे कह दूं,
तुम अपना फ़र्ज़ ना निभावों...
मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी एक प्रेमिका हूँ...
कहीं दूर बैठकर अकेले में,
तुम्हारे लौटकर आने का इंतज़ार करूंगी,
किसी ओर से कुछ कह नहीं सकती,
खुद से ही सिर्फ़ तुम्हारी बातें करूंगी,
तुम सिर्फ़ अपना फ़र्ज़ निभाना,
याद आए मेरी...
तो मेरी तस्वीर को सीने से लगाना,
ख़्वाब बनकर मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी,
अपनी आखिरी हर सांस तक,
सिर्फ़ तुम पर प्यार लुटाऊंगी,
मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी एक प्रेमिका हूँ,
प्रेमिका बनकर ही रह जाऊंगी,

