साथ
साथ
कुछ दिनों से मन में अजीब सी हलचल थी
नजरें धुंधली थी मन में कोलाहल था
दिल की आवाज़ कानों तक
पहुँचते पहुँचते दम तोड़ रहे थे,
हर तरफ नकारात्मक विचारों का
गुबार सा था,
पाँव लड़खड़ाते थे विचार दिशाहीन थे
ऐसे में किसी ने चुपके से
आकर मुझे थाम लिया
वह ख़ामोशी से मेरे साथ हो लिया
अचानक ही मन में
उठता बवंडर शांत पड़ गया
राहें उजागर हुईं और
सब कुछ साफ़ दिखने लगा
हालात सुधरे नहीं पर
उनसे जूझने का जज़्बा आ गया
किसी की उपस्थिति मात्र से
यह बदलाव आ गया
पता नहीं मुझ जैसे कितने यूँ जूझ रहे होंगे
बेसब्री से किनारा ढूंढ रहे होंगे
ऐसे ही किसी व्यथित के मन को
मुझे भी संभालना है
वो भले हाथ बढ़ाये न बढ़ाये
मुझे ऐसे ही किसी लड़खड़ाते को संभालना है।