STORYMIRROR

राजकुमार कांदु

Abstract

4  

राजकुमार कांदु

Abstract

सात अंक का फेर

सात अंक का फेर

2 mins
309

सात अंक का फेर है क्या ,यह तो ईश्वर ही जाने

सात जन्म के साथी को साथी पल में पहचाने

लेकर फेरे सात साथ रहने की खाते कसमें

एक जन्म भी साथ न रहते मन रखते ना वश में

ऐसे भी जातक हैं जग में निष्ठा से जीते हैं

खुशी खुशी हर गम का प्याला जीवन भर पीते हैं

कसमें वादे करते हैं जाने कितने बहुतेरे पर देखा है आफत में

अपनी अँखियों के फेरेसात जन्म का बंधन ये तो पल भर में ही तोड़े

निज खुशियों की खातिर साथी को अधजल में छोड़े

सात जन्म की बात गलत है अब लो इसको मान

प्रेम प्यार के दो पल हीजीवन में काफी जान

अब सागर की बात करो बोलो किसने देखा है

जग भर फैली जलराशि में किसने खींची रेखा है

एक ही धरती , एक ही अम्बर हम सबने बांटा है

सच कहता हूँ मानव हीमानव का अब कांटा है

नभ में कितने तारे हैंकोई गिनती ना जाने

फिर क्यों हम कुछ तारों कोसप्तऋषि ही मानें

रंग तीन हैं सब पहचानेंबाकी सब बातें हैं

कवियों के सतरंगी सपनेसब मन को भाते हैं

सच क्या है यह सब ही जानेंपर किसको फुर्सत है

घंटी बाँधे बिल्ली को किसकी इतनी जुर्रत है

सात अजूबे बीती बातें आज बात हो दर्ज

नए नए नित खोज हैं होते नए नए हैं मर्ज

बिजली , वाहन , रॉकेट , ईंधनइनको क्या बोलोगे

दूर के दर्शन पास कराता बक्सा जब खोलोगे

सात की गिनती पार हुई कब ये कोई न जाने

कदम कदम पर अचरज है अब सब इतना ही मानें

सात सुर हैं सच है ये कोई इतना बतलाओ

साध सके जो सातों सुर कोइ सा एक सुझाओ

मानव मन की निर्मित हैं जग में ये सारी बातें

ईश्वर ने सब एक बनाया चाहे दिन हो या रातें

आओ हम सब प्रण कर लें अब बोलें प्यार की बोली

मानव मानव मिलकर सोचें बन जाएं सब हमजोली

एक धरा हो , एक गगन हो धर्म एक हो न्यारा

इंसां बनकर हम सब जी लें विश्व बनाएं प्यारा!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract