सार्थक जीवन
सार्थक जीवन
क्या आपने किसी बड़ी शिला को
पत्थर की छोटी सी कांकरी पर
कुछ लिखते देखा है?
वो बड़े से बड़ा पर्वत भी
कितना तुच्छ पड़ जाता है,
जब पत्थर का एक छोटा सा टुकड़ा
बड़ी सी शिला पर..
अपना नाम लिख जाता है।।
प्यार का इक छोटा सा शब्द
किसी गीता या कुरान से
कम नहीं होता।
काश..
हमें भी
बड़ा होने का भ्रम नहीं होता !
तो आओ हम..
धरती ,अम्बर
पर्वत ,सागर
और स्वयंंभूं भगवान
बनने की बजाय
आकाश के छोटे छोटे तारे
जल की नन्ही नन्ही बूंद
और प्यार के मीठे मीठे
बोल बने हम..
और हो सके तो तोड़ दें...
बड़ा और बड़ा
होने का भ्रम!!
सच कहो..
छोटे छोटे तारों के बिना
आकाश
जल की नन्हीं नन्हीं बूंदों के
बिना....गागर
घुटनो के बल रेंगती नदियों के
बिना ...सागर
क्या कोई महत्व रखते हैं???
भले ही यह सब बड़े हैं
पर किसी ना किसी छोटे के
दम पे खड़े हैं।
तो आओ...
हम कुछ पाने की बजाय
कुछ खोना सीखे
और
निरर्थक बड़ा होने की बजाय..
सार्थक छोटा होना सीखें।
सार्थक छोटा होना सीखें।।