साक़ी
साक़ी
न तुम देखना न मैं देखूंगा कभी तुम्हारी सूरत साक़ी
पर याद रखना तुम्हें पाने की थी कभी हसरत साक़ी।
तुम्हारे जिस्म को तो कभी देखा ही नहीं मैंने साक़ी
इतनी नज़ाकत से भरी पड़ी थी तुम्हारी सीरत साक़ी।
कभी सोचा न था की विरह की घड़ी आएंगी साक़ी
ये वक़्त ने हमारे साथ की है कैसी शरारत साक़ी।
कभी रोता हूँ तो कभी हँसता हूँ तन्हाइयो में साक़ी
कोई पागल कहता है तो अब नहीं होती हैरत साक़ी।
मैं लाज़मी हो गया हूँ तन्हाईयो के साथ रहने का साक़ी
दिल को महसूस नहीं होती अब किसी की जरूरत साक़ी।