रूहानी
रूहानी
ख़तम भी न हो सके,
जो आस है एहसास का।
दफ़न भी न हो सके,
जो प्यास है उस आस का।
कम से कम में थे मिले,
और कम से कम में गुम हुए।
गुम हुए तुम शौक से,
और शौक से हम भी चलें।
खुद को झूठलाते बनें,
उस झूठ के एहसास पे।
अब इस बनावट को भला,
बेनाम कह के ताल दे।
या बचपनें के खेल सा,
खेल खेल में उजाड़ दे।
ख़तम भी न हो सके,
जो आस है एहसास का।
दफ़न भी न हो सके,
जो प्यास है उस आस का।
