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Suresh Kulkarni

Abstract

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Suresh Kulkarni

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रहो तैयार !

रहो तैयार !

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ऋतु आती है

कुछ न कुछ देती है

सम्हलना सँवरना

काम अपना है


बारीश बरसेगी

जमके सतायेगी

पानीको....

ऋतुकी देनको

सम्हलना सँवरना

काम अपना है


ग्रीष्म कडकेगा

दाह भडकेगा

ऊर्जा को

सम्हलना सँवरना

काम अपना है


पवन चलती है

झिंझोडके रखती है

काबूमे लाना

सम्हलना सँवरना

काम अपना है


बौछार हिमकी

ठंड है कडकती

उसको सहारना

सम्हलना सँवरना

काम अपना है


फसल आती है

फिसल जाती है

सबक कोई न कोई

छोड जाती है

सम्हलना सँवरना

काम अपना है


ये धरा ये गगन

ये हवा ऋतुकी चलन

सब साथी है

सम्हलना सँवरना

काम अपना है !


बरसों बीत गये

आँधियाँ आती रही

बरसो बीत गये

सूखा पडा


बरसो बीत गये

महामारी

सताती रही 

हम तैयार ही नहीं रहते !

सम्हलना सँवरना

काम अपना है !


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