रावण राज
रावण राज
शिव शंकर से मांगा गद्दी,
सोने का मकान दिया
जिसने तुमको पुनर्जन्म दी,
उसको तुम सल्लाख रूपी सम्सान दिया
भीख मांगने गए थे तुम भोले के दरबार में,
भोले इतना दयालु था कि तुमको भरा आकवार में
ऐसा दिया वरदान की तुम बैठ गए राजगद्दी पे,
वार्णा तेरा नामो - निशान नहीं होता बिहार के चौहद्दी पे
तिनोलोक का सपना देखा सफल नहीं हो पाया,
आधी रात भिभिषण को तूने घर से भगाया
शूर्रफनखा के नाक के खातिर मारीच को मरवाया है,
जबरदस्ती ही आज तूने सीता को अपनाया है
आज तुम्हारे लंका में घुस गया हनुमान,
आशोक वाटिका तोर दी उसने,
अक्षय गया समशन
सीधी मन से लौटा दे सीता,
घमंड के बल पर मत बनो सुल्तान
तू मत बनो सुल्तान।
